शनिवार, 17 नवंबर 2007

शब्द

आज सुबह अचानक यतीश की कविता मिली - "शब्द" फिर उनकी कविता से रचना की एक प्रविष्टि पर पहुँची शीर्षक था शब्द ही ना समझे पर शब्दों को। पोस्टिंग से भी शानदार कमेंट पढ़ने को मिला, शास्त्री जे सी फिलिप का- "शब्द में है ताकत"... इस दौर से गुज़रते हुए अपनी भी एक कविता याद आई। सोचा शब्द को थोड़ा विस्तार दे दूँ...मेरी शब्द शीर्षक कविता 2001 में लिखी गई थी और यह मेरे कविता संग्रह वक्त के साथ में प्रकाशित हुई थी। यह ब्लॉग गीतों के लिए बनाया था पर ब्लॉगियों से प्रभावित होकर आज प्रस्तुत है कविता- शब्द

शब्द दोस्त हैं मेरे
अलग-अलग काम के लिए
अलग-अलग वक्त पर
सहयोग करते हुए
मेरी भाषा के शब्द
मेरे साथ बढ़ते हुए ।


मुश्किल में वही काम आए हैं
मेरे विश्वास पर खरे उतरते हुए
जब कोई साथ न दे
वही बने हैं मेरा संबल
मेरा धर्म,
मेरा ईश्वर
मेरा दर्शन
रात के अंधेरे से
सुबह के उजाले तक
कभी मेरी राह
कभी मेरी मंज़िल
कभी हमसफ़र

ठीक ही कहा है--
शब्द-ब्रह्म ।

6 टिप्‍पणियां:

रवि रतलामी ने कहा…

चिट्ठे के आर्काइव की सेटिंग (सेटिंग्स>आर्काइविंग) को साप्ताहिक या मासिक कर दें, तथा उसे Hierarchy (टैम्पलेट>पेजएलिमेंट>आर्काइव) कर दें तो पुरानी रचनाओं को चिट्ठे पर ही ढूंढ कर पढ़ने में पाठकों आसानी रहती है.

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

मुश्किल में वही काम आए हैं
मेरे विश्वास पर खरे उतरते हुए
जब कोई साथ न दे
वही बने हैं मेरा संबल
मेरा धर्म,
मेरा ईश्वर
मेरा दर्शन

पूर्णतया सहमत हूँ , आपसे !!

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

धन्यवाद रवि, आपके निर्देश का पालन करने की कोशिश की है बताएँ सबकुछ ठीक हुआ या नहीं।

Tarun ने कहा…

सही लिखा है आपने शब्दों के लिये, आपकी कविता पढ़कर इसी शीर्षक की उस हिन्दी फिल्म की याद आ गयी जिसमें नायक शब्दों से खेलता है। आपने क्या वो फिल्म देखी है। सब शब्दों का ही माया जाल है।

ghughutibasuti ने कहा…

कविता बहुत अच्छी लगी । मुझे भी शब्द सदा मोहित करते हैं ।
घुघूती बासूती

blogkosh ने कहा…

बहुत सुन्दर