शनिवार, 14 फ़रवरी 2009
चपाती और फुलका
"रोटी तो रोटी है चाहे चपाती कहो या फुलका क्या फ़र्क पढ़ता है?" लेकिन मेरे इस विचार से हरिराम जी सहमत नहीं थे। वे हमारे नए खानसामा थे। उनका कहना था, कम से कम रोज़ खाई जाने वाली चीज़ों के बारे में सबको सही जानकारी होनी चाहिए।
पहली बार उनसे जाना कि चपाती और फुलके में अंतर है। चपाती होती है ढीले और नर्म आटे की। बेलते समय ध्यान रखा जाता है कि रोटी सिर्फ़ एक ही तरफ़ से बेली जाए, ताकि फूलने के बाद इसकी एक परत बिलकुल बारीक हो जैसे छिक्कल और दूसरी परत अपेक्षाकृत मोटी। फिर आग पर बस एक पल रखा जाय फूलने तक। इस रोटी को चबाने की ज़रूरत नहीं। मुँह में रखेंगे तो ऐसे ही घुल जाएगी। बीमार को रोटी का बक्कल देना हो तो ऐसी ही रोटी चाहिए।
लेकिन फुलका अलग है। इसको चूल्हे से खाने वाले की थाली में पहुँचने तक फूला ही रहना चाहिए। इसका आटा माड़ते हैं कड़क और बेलते हैं दोनों तरफ़ से, ताकि फूलने बाद दोनों परतों की मोटाई बराबर रहे। फिर आग पर पलट-पलट कर दोनों तरफ़ अच्छी तरह चित्तियाँ डालते हैं जिससे हल्का कुरकुरापन आता है।
है ना ज्ञान की बात? तो क्या ज्ञान प्राप्त होने के बाद इस बात से कुछ अंतर पड़ता है कि आज घर में चपातियाँ बन रही हैं या फुलके?
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19 टिप्पणियां:
जब भूख लगती है तो क्या फर्क पड़ता है कि चपाती है या फुलका? बस पेट भरना चाहिये!
वाह! सच में ज्ञान की बात ही है।धन्यवाद।
AAGE SE DHAYAN RAKHUNGA KI BAAI NE CHAPATI BANAI HAI YA PHULKA,
BAAT BAHUT HI GAYAN KI HAI
बहुत ही बढ़िया पर सुबह सुबह चपाती और फुलके पढ़कर भूख लग आई है पर मुसीवत है की सुबह सुबह बनाएगा कौन ?
अरे वाह! बहुत ज्ञान बढ़ गया हमारा. हमको फुलका बोलकर इतने सालों से साधना चपाती खिला रही थी और हमें मालूम ही नहीं था. आज ही पढ़ाता हूँ उसे. :)
सही है, हम क्या खा रहे हैं, इसकी जानकारी होना ही चाहिए। रोटी की इस बारीकी को शायद कम लोग ही जानते होंगे।
रोज खाते है लेकिन फर्क का नही पता था आज आपने बारीकी से बता दिया ! धन्यवाद !
बढ़िया जानकारी । एक होती है मराठी पोळी। आटे में थोड़ा सा तेल या घी डालकर गूँदा जाता है। तवे जितनी बड़ी होती है और सुबह की बनी शाम को भी खाएँ तो मुलायम ही रहती हैं। कोई मराठी ज्ञान वर्धन करें तो बेहतर होगा।
घुघूती बासूती
roti ke bare me aaj jansatta me arun kumar ka lekh dilchasp hai.ve parmpragat khan pan par har hafte likhte hai
हमारे हॉस्टल मेस में जो रोटी बनती है उसके लिए चपाती और फुलका कुछ ज्यादा ही कोमल नाम हैं. उसका नाम थोडा वजनदार होना चाहिए जैसे "रोटा" या "चपाता". अगर उसकी फोटो खींच कर ब्लॉग पर डाल दूँ तो बच्चे देखकर डर जाएँ और बड़ों की भूख गायब हो जाए.
आपने तो ऐसे ज्ञान दे दिया कि
भरे पेट भी फुलके के लिए चूहे
उछल कूद मचाने लग गए हैं।
wah poornimaji.
aapki jaankaari padhkar bhookh lag aayi.samjha jaa sakta hai ke aap khaane ki kitni shaukeen hongi.
पूर्णिमा जी ,
बहुत अच्छी जानकारी दी अपने चपाती और फुल्के
में फर्क बता कर .वैसे दक्षिण भारत ,खास कर महाराष्ट्र में चपाती बहुत पतले (दो परत वाले )पराठे को भी कहते हैं .
हेमंत कुमार
roti ke do nam bahut achhe lage chapati aur phulka
हमारे यहाँ रोजाना ही फुल्के बनते हैं। घी लगे, गर्मागर्म और इतने कड़क की परत भी टूट जाये आहा! खाने का मजा ही अलग है।
चपाती में मजा नहीं आता, गुजरात में चपाती ज्यादा खाई जाती है वहीं हमारे राजस्थान में "फुल्का"।
हरिरामजी निश्चय ही राजस्थानी होंगे।
वाह! सच में मुझे यह अन्तर पता ही नही था।
पूर्णिमा जी के इस लेख से मुझे यह अन्तर पता चला।
मैं पूर्णिमा जी से सहमत हूँ कि "चपाती हो या फुलका", कुछ फर्क नही पड़ता, दोनो का काम तो मनुष्य की भूख मिटाकर उसे तृप्त करना है।
भविष्य में इस प्रकार के और उत्तम लेख आपसे जानने को मिले।
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विनीत कुमार गुप्ता
(जय माता दी)
अरे हम तो समझे थे कि चपाती की चार फोल्ड्स होते हैं पराठे की तरह, हर फोल्ड पर तेल लगता है , सिर्फ इसे तला नही जाता तवे पर सेका जाता है । महाराष्ट्र में यही बनती है ज्यादा तर घरों में ।
bahut hi gyanvardhak lekh he aapka.
itna barik farak aaj tak kisi ne nahin bataya tha.dhanyavad.
very informative...!roti or fulka..sochti thi dono ka meaning ek hi hai...
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