मंदिर दियना बार सखी री
मंदिर दियना बार!
बिनु प्रकाश घट-घट सूनापन
सूझे कहीं न द्वार!
कौन गहे गलबहियाँ सजनी
कौन बँटाए पीर
कब तक ढोऊँ अधजल घट यह
रह-रह छलके नीर
झंझा अमित अपार सखी री
आँचल ओट सम्हार
चक्र गहें कर्मो के बंधन
स्थिर रहे न धीर
तीन द्वीप और सात समंदर
दुनियाँ बाज़ीगीर
जर्जर मन पतवार सखी री
भव का आर न पार!
अगम अगोचर प्रिय की नगरी
स्वयं प्रकाशित कर यह गगरी
दिशा-दिशा उत्सव का मंगल
दीपावलि छाई है सगरी
छुटे चैतन्य अनार सखी री
फैले जग उजियार!
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