हवा में घुल रहा विश्वास
कोई साथ में है
धूप के दोने
दुपहरी भेजती है
छाँह सुख की
रोटियाँ सी सेंकती है
उड़ रही डालें
महक के छोड़ती उच्छवास
कोई साथ में है
बादलों की ओढ़नी
मन ओढ़ता है
एक घुँघरू
चूड़ियों में बोलता है
नाद अनहद का छिपाए
मोक्ष का विन्यास
कोई साथ में है
9 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना पूर्णिमा
"धूप के दोने
दुपहरी भेजती है
छाँह सुख की
रोटियाँ सी सेंकती है
उड़ रही डालें
महक के छोड़ती उच्छवास
कोई साथ में है"
अति सुंदर पंक्तियाँ. आप के भाव पूर्ण लेखन को देख कर सच में मन में इर्षा होती है .
मेरे ब्लॉग पर आप का इंतज़ार था है और रहेगा.
नीरज
बहुत सुन्दर!!!
सुंदर ! हमेशा की तरह ।
धन्यवाद प्रत्यक्षा कहाँ हो? कैसी हो?
बहुत दिनों से तुम्हारी नई कहानी का इंतज़ार है अभिव्यक्ति में...
बहुत सुन्दर पूर्णिमा जी .. कर ख़ास कर , अन्तिम पंक्तियाँ ...!!
सुंदर!!
संजीत और लावण्या को भी धन्यवाद
आपकी कविता पहाड़ी से झरता एक झरना-खुशबू लिए साथ ,छूने को सारा आकाश ।
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
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