शुक्रवार, 16 नवंबर 2007

सन्नाटों में आवाज़ें

सन्नाटों में भी आवाज़ें
खुशियों में भी दर्द छुपे हैं

शब्दों ने
कुछ और कहा है
अर्थों ने
कुछ और गुना है
समझ बूझकर चलने वाले
रस सागर में डूब चुके हैं

तोल-मोल है
बड़ा भाव है
दुनिया आडंबर
तनाव है
झूठे खड़े मंच पर ऊँचे
हाथ जोड़कर संत झुके हैं

जग की बस्ती
में दीवाने
ईश्वर अल्ला को
पहचाने
मन के सादे बाज़ारों में
हम यारों बेमोल बिके हैं

9 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

"मन के सादे बाज़ारों में
हम यारों बेमोल बिके हैं"
सुंदर! अति सुंदर! बहुत अच्छी कविता लगी आपकी. बधाई.

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

बाल किशन जी धन्यवाद लेकिन ये ज्ञान भैया कौन हैं जो इलाहाबाद से मुंबई पहुँच गए?

बालकिशन ने कहा…

@ पूर्णिमा वर्मन
आप ब्लोगर है और ज्ञान भइया को नही जानती? क्या कहू? समझ नही पा रहा . अच्छा बतलाता हूँ उनका पुरा नाम है ज्ञानदत्त पाण्डेय. उनका ब्लॉग है ज्ञान भइया का ब्लॉग है.
एक बार जरा वंहा जरूर जाइए. फ़िर आप हमेशा ही जाती रहेंगी.

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

धन्यवाद बाल किशन भैया जो ज्ञान भैया का पता बता दिया। हम ठहरे नये नवाड़ी ब्लागर नए नए पाठ पढ़ रहे हैं। :)

बालकिशन ने कहा…

ब्लॉग तो हमने आपका देखा है जी किसी भी सूरत से नई तो आप नही लगती अलबत्ता मेरे मंदबुद्धि मे तो आप एक पुरानी खिलवाड़ नज़र आती है. पर पता नही मेरे जैसे नए ब्लोगेर के सामने क्यों अपने आपको नई साबित करना चाहती है.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

पूर्णिमा जी
"तोल-मोल है
बड़ा भाव है
दुनिया आडंबर
तनाव है
झूठे खड़े मंच पर ऊँचे
हाथ जोड़कर संत झुके हैं "
वाह... वाह... वाह... बहुत खूब. आप की सत्य की सादा बयानी बिल्कुल अलग रंग लिए रहती है इसलिए आप का लेखन हमेशा ताजगी का एहसास देता है.
लिखती रहें
नीरज

Satyendra PS ने कहा…

खुशियों में भी दर्द छुपे हैं
पहली बार आपके ब्लाग पर आया। आपने तो खुशी और दर्द एक साथ दे दिया । बेहतर कविता है।

Manish Kumar ने कहा…

झूठे खड़े मंच पर ऊँचे
हाथ जोड़कर संत झुके हैं

सुंदर..अच्छी लगी आपकी ये कविता।

रवि रतलामी ने कहा…

"ब्लॉग तो हमने आपका देखा है जी किसी भी सूरत से नई तो आप नही लगती ...."

बालकिशन जी, आप अपने ही वाक्य में फंस गए लगते हैं. आप इंटरनेट पर हिन्दी प्रयोग करते हैं और पूर्णिमा जी को नहीं जानते?

जरा 'अभिव्यक्ति' और 'पूर्णिमा वर्मन' सर्च कर देखिए गूगलवा पर :)