मंगलवार, 26 मई 2009

बीते हुए दिन... हाय!

शारजाह क्रिकेट स्टेडियम शारजाह की शान है। आखिर इसी के कारण तो इमारात के इस छोटे से सुंदर शहर को घर घर में पहुँचने का अवसर मिला और रातों रात लोग इसके उन प्रमुख स्थलों को पहचानने लगे जो लाइव क्रिकेट के मध्यांतर में दिखाए जाते थे। क्या आप उन खूबसूरत महिलाओं को कभी भूल सकते हैं जो दुबई के फैशनेबल बाज़ारों से खरीदे गए बड़े-बड़े बुंदे पहने दर्शक दीर्घा में हँसती बतियाती दिखती थीं और जिन पर कैमरा बार-बार ठहर जाता था। इसी स्टेडियम के कारण शारजाह को विश्व में सबसे अधिक एक दिवसीय क्रिकेट आयोजित करने का कीर्तिमान प्राप्त हुआ था। १९८४ से २००३ तक बीस वर्ष के अपने स्वर्ण युग से गुजरे इस स्टेडियम में १९८ एकदिवसीय और चार टेस्ट शृंखलाओं को आयोजित करने का गौरव प्राप्त है।

१९८२ में बने इस स्टेडियम का यह कीर्तिमान दूसरे स्थान पर सिडनी के १२९ और मेलबॉर्न के १२४ एक दिवसीय मैचों से आज भी बहुत आगे है। इस महाद्वीप की दो दिग्गज टीमों के बीच मैच के शानदार दिन भूलने की चीज़ नहीं जब भारत और पाकिस्तान के बराबर दर्शक स्टेडियम को अपनी उपस्थिति से गुलज़ार किए रहते थे। उस समय शहर में शायद ही लोग किसी और विषय पर बात करते हों। उन दिनों सीमित ओवरों के खेल में एक एक रन के लिए संघर्ष करते कुछ रोमांचक पल और विश्व रेकार्डों की स्थापना के स्वर्णिम अवसर भी इस स्टेडियम के इतिहास में सुरक्षित है।

अतीत में क्रिकेट की आन-बान के प्रतीक इस स्टेडियम में अब कोई अंतर्राष्ट्रीय मैच नहीं होते। बीसवीं शती के अंत में मैच फ़िक्सिंग के कारण बदनाम हुआ यह स्टेडियम आज अपने बुरे दिनों से गुज़र रहा है। जिस समय भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच बंद हुए उसी समय से यह स्टेडियम अपना आकर्षण खोने लगा था। कुछ अंतर्राष्टी़य मैच यहाँ आयोजित किए गए पर भारत और पाकिस्तान की टीमों के बिना वे दर्शकों को स्टेडियम तक खींच लाने में सफल नहीं हुए। मानो भीड़ केवल भारत और पाकिस्तान के मैच ही देखने आती थी। बाद में यहाँ कुछ सफल संगीत कार्यक्रम आयोजित किए गए कभी कदा कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए इसका प्रयोग किया गया पर जो बात पहले क्रिकेट की थी वह नहीं बन पाई।

लोकप्रियता घटी तो रखरखाव और सौंदर्य में कटौती झेलता यह स्टेडियम अपना रूप खोने लगा। जिसे भी शारजाह और क्रिकेट से प्यार है वह स्टेडियम के इस रूप को देखकर दुखी है। आज के स्थानीय समाचार पत्र में इमारात क्रिकेट बोर्ड के प्रबंधक मज़हर ख़ान का वक्तव्य छपा है। वे कहते हैं कि नई क्रिकेट शृंखला के आयोजन के लिए बातचीत जारी है। अगर सब निश्चित हो गया तो चार महीने में वे इस स्टेडियम का कायाकल्प कर देंगे। यह वक्तव्य आशा की किरन लेकर आया है। शायद बीते हुए दिन लौटने वाले हैं।

सोमवार, 18 मई 2009

यार ख़ैयार


गरमी की तपन और ख़ैयार (या ख़ियार) की तरावट का मज़ा वही जान सकता है जो इमारात में रहता है। ख़ैयार अरबी खीरा है जो यहाँ हर मौसम में मिलता है और तरह तरह से खाया जाता है। चाहे ख़ैयार-बि- लबान बनाएँ, मास्त-ओ-ख़ैयार बनाएँ या बोरानि-ए- ख़ैयार बनाएँ यह सब मिलते जुलते व्यंजन है जिन्हें खीरे को दही और पुदीने के साथ मिलाकर बनाया जाता है।

ज़ाहिर है इमारात की गरमी में दही और पुदीने के साथ मिली खीरे की तरावट का जवाब नहीं। ख़ैयार का अचार भी बनता है। कोई अरबी दावत ऐसी नहीं जो ख़ैयार के बिना पूरी हो। कोई सब्ज़ी की दूकान, कोई सुपर मार्केट कोई परचून की दूकान ऐसी नहीं जहाँ ख़ैयार न मिलता हो। रहीम दादा कह गए हैं-- खीरा मुख से काट कर मलियत लोन लगाय, लेकिन ख़ैयार तो जन्मा ही मीठा है। न मुख काटने की ज़रूरत न लोन मलने की। छिक्कल भी बिलकुल पतला जिसे छीलने तक की ज़रूरत नहीं बस खरीदो और खा लो।

कुदरत ने इस देश को गरमी की सज़ा के साथ मीठे स्वादिष्ट ख़ैयार का वरदान दिया है। यहाँ शायद ही कोई घर हो जहाँ ख़ैयार रोज़ न खाया जाता हो। देखने में भारत की चिकनी तुरई जैसी शक्ल वाला ख़ैयार इमारात में हर मौसम का यार है। इस देश में जीना है तो ख़ैयार से यारी बड़े काम की है क्यों कि ख़ैयार इस देश की आत्मा है और आत्मा के बिना भी कोई ज़िन्दगी होती है।

बुधवार, 13 मई 2009

शावरमा


शावरमा अरब दुनिया का समोसा है। हर सड़क पर इसकी एक दूकान ज़रूर होगी। मज़ेदार नाश्ता तो यह है ही, जल्दी हो तो सुबह या शाम का खाना भी इससे निबटाया जा सकता है।

शावरमा दो चीज़ें मिलाकर तैयार होता हैं। खमीरी रोटी जिसे खबूस कहते हैं और मसाला जो खबूस में भरा जाता है। खबूस कुछ कुछ भटूरे जैसी होती है लेकिन यह तली नहीं जाती भट्ठी में सेंकी जाती है। भरावन आमतौर पर ३ तरह की होती है मुर्गे, मीट या फ़िलाफ़िल की। फिलाफिल दाल के पकौड़े होते हैं जो तल कर बनाए जाते हैं और तोड़कर खबूस में भरे जाते हैं। मुर्ग या मीट को मसाले के साथ एक घूमती हुई स्वचालित छड़ी में बिजली के हीटर के सामने रोस्ट किया जाता है। जब बाहरी परत नर्म और सुनहरी हो जाती है तब तलवार जैसी बड़ी छुरी से उसको फ्रेंच फ्राई जैसा काट देते हैं और खबूस की दो परतों के बीच सलाद, तुर्श, ताहिनी और फ्रेंच फ्राई के साथ भर कर रोल बना देते हैं।

ताहिनी, लहसुन की हल्की गंधवाला, स्वाद में रायते जैसा होता है। तुर्श के नाम से ही जान सकते हैं कि यह तीखा और खट्टा होता है जिसे गाजर, हरी मिर्च और चुकंदर में सिरके के साथ नमक और कुटी मिर्च डालकर तैयार किया जाता है। गरम गरम शावरमा के साथ पिया जाता है ठंडा लबान, पर उस विषय में फिर कभी। हाँ बदलते समय के साथ लबान की जगह कोकाकोला लोकप्रिय होने लगा है, साँच को आँच क्या आप खुद ही देख लें।