शनिवार, 3 नवंबर 2007

हवा में

हवा में घुल रहा विश्वास
कोई साथ में है

धूप के दोने
दुपहरी भेजती है
छाँह सुख की
रोटियाँ सी सेंकती है
उड़ रही डालें
महक के छोड़ती उच्छवास
कोई साथ में है

बादलों की ओढ़नी
मन ओढ़ता है
एक घुँघरू
चूड़ियों में बोलता है
नाद अनहद का छिपाए
मोक्ष का विन्यास
कोई साथ में है

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