फिर नदी की बात सुन कर
चहचहाने लग गई है
यह हरी घाटी हवा से बात कर के
लहलहाने लग गई है
झर रहे झरने हँसी के
उड़ रहे तूफ़ान में स्वर
रेशमी दुकूल जैसे
बादलों के चीर नभ पर
और धरती रातरानी को
सजाने लग गई है
यह हरी घाटी हवा से बात कर के
महमहाने लग गई है
गाड़ कर
पेड़ों के झंडे
बज रहे वर्षा के मादल
आँजती वातायनों की
चितवनों में सांझ काजल
और बूँदों की मधुर आहट
रिझाने लग गई है
यह हरी घाटी हवा से बात कर के
गुनगुनाने लग गई है
1 टिप्पणी:
हमें गाना गुनगुनाना नहीं आता
पर इसे पढ़ कर
गुनगुनाने हम लग गए हैं
गीत की सफलता की
हरी घाटी में
घुमघुमाने हम लग गए हैं
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