बुधवार, 21 नवंबर 2007

आवारा दिन

आज एक पुराना गीत फिर से, शायद बहुत से मित्रों ने इसे पढ़ा नहीं होगा। यहाँ एक शब्द है भिनसारा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में काफ़ी प्रचलित इस शब्द का अर्थ है बिलकुल सुबह या उषाकाल। शायद आम हिंदी में हर जगह इस शब्द का प्रयोग ना भी होता हो। तो आज यह गीत विशेष रूप से बचपन की यादों के नाम--

दिन कितने आवारा थे
गली गली और बस्ती बस्ती
अपने मन
इकतारा थे

माटी की
खुशबू में पलते
एक खुशी से
हर दुख छलते
बाड़ी, चौक, गली, अमराई
हर पत्थर गुरुद्वारा थे
हम सूरज
भिनसारा थे

किसने
बड़े ख़्वाब देखे थे
किसने
ताजमहल रेखे थे
माँ की गोद,
पिता का साया
घर घाटी चौबारा थे
हम घर का
उजियारा थे

6 टिप्‍पणियां:

Shiv Kumar Mishra ने कहा…

बहुत बढ़िया...

Rajesh Roshan ने कहा…

बढ़िया लिखा है आपने

haidabadi ने कहा…

मोहतरमा पूर्णिमा साहिबा
पीली भीत की माटी की सोंधी सोंधी खुशबू है तू
दुनिया मैं कुछ और भी होंगे पर दुनिया मैं तू है तू
चाँद हदियाबादी डेनमार्क

Sanjay Karere ने कहा…

भिनसारा... यहां मप्र के बुंदेलखंड क्षेत्र में बुंदेली बोली में इसे भुनसारा या भुनसारे कहते हैं. पढ़ कर अच्‍छा लगा. गीत भी अच्‍छा है.

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

हां भिनसारे भी कहते हैं। निर्भर करता है कि कहाँ प्रयोग करना है।
एक प्रसिद्ध गीत है-
भिनसारे होगी अच्छी पढ़ाई
मुझको जगाना मुर्गा जी भाई

बालकिशन ने कहा…

जानकारी भी मिली और एक अच्छी कविता पढने को जिसमे गाँव की मिटटी की सुगंध है. आपको धन्यवाद.