शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

सड़कों पर


सड़कों पर हो रही सभाएँ
राजा को-
धुन रही व्यथाएँ


प्रजा
कष्ट में चुप बैठी थी
शासक की किस्मत ऐंठी थी
पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
राजतंत्र की हुई ठिठोली
अखबारों-
में छपी कथाएँ


दुनिया भर
में आग लग गई
हर हिटलर की वाट लग गई
सहनशीलता थक कर टूटी
प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
दुनिया को-
मथ रही हवाएँ


जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की-
नौकर सेनाएँ

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

फागुन के दोहे

1
ऐसी दौड़ी फगुनहट ढाणी चौक फलांग।
फागुन आया खेत में गये पड़ोसी जान।।


आम बौराया आँगना कोयल चढ़ी अटार।
चंग द्वार दे दादरा मौसम हुआ बहार।।


दूब फूल की गुदगुदी बतरस चढ़ी मिठास।
मुलके दादी भामरी मौसम को है आस।।


वर गेहूँ बाली सजा खड़ी फ़स़ल बारात।
सुग्गा छेड़े पी कहाँ सरसों पीली गात।।


ऋतु के मोखे सब खड़े पाने को सौगात।
मानक बाँटे छाँट कर टेसू ढाक पलाश।।


ढीठ छोरियाँ तितलियाँ रोकें राह वसंत।
धरती सब क्यारी हुई अम्बर हुआ पतंग।।


मौसम के मतदान में हुआ अराजक काम।
पतझर में घायल हुए निरे पात पैगाम।।


दबा बनारस पान को पीक दयी यौं डार।
चैत गुनगुनी दोपहर गुलमोहर कचनार।।


सजे माँडने आँगने होली के त्योहार।
बुरी बलायें जल मरें शगुन सजाए द्वार।।


मन के आँगन रच गए कुंकुम अबीर गुलाल।
लाली फागुन माह की बढ़े साल दर साल।।