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दुनिया में नाक ऊँची रखना सबसे मुश्किल काम है। ठीक नाक के सामने, अपनी ही नाक कब कट जाए समझ पाना आसान नहीं। खुद को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे कहते हैं तो विश्वास नहीं होता, अहसास तो तब जाकर होता है जब ज़माना कटी नाक को देख नाक-भौं सिकोड़ने लगता है।
किया भी क्या जाए, किसी की नाक में नकेल तो डाली नहीं जा सकती। समय स्वतंत्रता का है हर किसी को, हर किसी काम में अपनी नाक घुसेड़ने की पूरी आज़ादी है। आप चाहें उनकी नाक में दम कर दें, वे सुधरने वाले नहीं, नाक नीची किए चुपचाप बैठे रहेंगे और मौका पड़ते ही आपकी नाक ले उड़ेंगे। फिर अपनी नाक बचाने के लिए आप उनको नाकों चने चबवा पाते हैं, या खुद अपनी नाक रगड़ते हैं ये सब कूटनीति की बातें है, जिसका हिसाब कोई मामूली व्यक्ति नहीं दे सकता। इसके लिए तो कोई नाक वाला चाहिए और नाक वाला भी ऐसा जो नाक पर मक्खी न बैठने दे, वर्ना लोग कहने लगेंगे कि नाक कटी पर हठ न हटी।
सो दुआ यही है कि नाक रह जाए, बात रह जाए। सबकी बुरी हठ हटे पर किसी की नाक न कटे।