tag:blogger.com,1999:blog-36276544840637107862024-02-19T20:49:20.850+04:00चोंच में आकाशपूर्णिमा वर्मन की विविध रचनाओं का संग्रहपूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comBlogger96125tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-75799613289755876612012-07-27T11:05:00.006+04:002022-11-30T14:48:22.255+04:00धुंध में डूबा ग्रीष्माकाश
जुलाई अगस्त के महीने मध्यपूर्व में गर्मी
के होते हैं। कभी ऐसी गर्मी देखी है
जब आसमान कोहरे से ढक जाए?
इमारात में पहली बार
जब ऐसी धुंध देखी तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्यों कि भारत में तो धुंध सिर्फ
सर्दियों के दिनों में होती थी। गर्मी के मौसम
में यहाँ आमतौर पर पाँच-सात दिन ऐसे होते ही हैं। आज शारजाह में वही कोहरेवाला दिन है। दोपहरपूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-69687568889808472012-01-31T14:19:00.001+04:002022-11-30T14:48:34.862+04:00एक पुराना प्रमाण पत्र जो आज भी प्रेरित करता हैइस बार लखनऊ गई तो पिताजी ने दादा जी का यह प्रमाण पत्र मुझे दिया। कागज पुराना होकर खराब हो गया है मगर इबारत साफ है। इस प्रमाण पत्र में दर्ज है कि उन्होंने हाई स्कूल में हिंदी में विशेष योग्यता प्राप्त की थी। बाद में वे एम.बी.बी.एस. डाक्टर बने। दादी बड़े गर्व से बतातीं कि २७ साल की आयु में उन्होंने बिना फेल हुए एम.बी.बी.एस. की डिग्री प्राप्त की थी।
"एम.बी.बी.एस में तो सब अच्छे पढ़ने वाले ही पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-80223598685925236552011-08-22T09:54:00.001+04:002022-11-30T14:02:25.911+04:00जन्मदिन अभिव्यक्ति का- उपहार पाठकों के लिये१५ अगस्त २०११ को अभिव्यक्ति अपने जीवन के ११ वर्ष पूरे कर १२वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। हर साल अभिव्यक्ति के जन्मदिन पर पाठकों के लिये एक विशेष उपहार की परंपरा रही है। इस वर्ष हमारी तकनीकी टीम ने दिन रात परिश्रम कर के तैयार किया है- तुक-कोश। एक लाख से अधिक शब्दों वाले इस तुक कोश में किसी भी शब्द से मिलते तुकांत शब्दों की खोज की जा सकती है।
गीति काव्य की हमारे देश में अद्भुत परंपरा है। लेकिन पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-57009925796842045332011-07-04T11:19:00.003+04:002022-11-30T14:48:48.193+04:00कूड़ेदानों पर हिंदी -वाह ! हिंदी में ? मेरी पहली प्रतिक्रिया यही हुई थी इन नए डिब्बों को देखकर कर। कहना न होगा कि भाषा की लोकप्रियता और आवश्यकता बोलने और प्रयोग करने वालों की संख्या पर निर्भर होती है न कि सरकारी नियमों, देश या स्थान पर। यदि सरकार को पता चले कि जनता की भाषा बोले बिना काम नहीं चलेगा तो वे जनता की भाषा बोलने से परहेज नहीं करेंगे। इमारात में लगे नए कूड़ेदान भी इसे सिद्ध करते हैं।
ऐसे कूड़ेदान मैंने पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-18657371279448038692011-06-09T08:06:00.004+04:002022-11-30T14:49:17.639+04:00अति की भली न धूपगरमी का मौसम जारी है और विश्व के बहुत से देशों में सुख का सुख का साम्राज्य फैला हुआ है। कहते हैं कि सर्दी के बादलों से ढँके आकाश और छोटे दिनों के कारण जब ठंडे देशों में सूरज की रोशनी नहीं मिलती तो अनेक लोगों को दर्द, थकान और अवसाद की अनुभूति होती है। उनके लिए ग्रीष्म ऋतु वह सुहावना समय है, जब चित्त खुशी से भरा रहता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज का प्रकाश हमारे मस्तिष्क में एंडोरफ़ीन और पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-40457321046695469482011-05-14T01:23:00.003+04:002022-11-30T14:49:29.259+04:00तरावट की तलाश
गरम देश होने के कारण इमारात के निवासियों को तरावट की तलाश सदा बनी रहती है। इसके लिए जगह जगह वाटर पार्कों और आइस रिंकों का निर्माण किया गया है लेकिन जो आनंद प्रकृति के सान्निध्य में मिलता है वह अन्यत्र कहाँ!
प्रकृति द्वारा इस देश को दिए गए बहुमूल्य उपहारों में से एक है- हत्ता के हरियाले जलकुंड। विस्तृत रेगिस्तान वाले इस देश को हवाई जहाज़ में से देखें तो भूरे मैदान के बीच शहरों के हरियाले टापू पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-58871667187949745182011-05-03T02:02:00.000+04:002022-11-30T14:02:36.346+04:00जाना कहाँ रे...तेज़ कार चलाने का शौक कोई नया नहीं। यों तो इस शौक वाले कई प्रतियोगिताएँ और खेल आयोजित करते हैं पर सड़कों पर अपना करतब दिखाने वालों की भी कमी नहीं। जब भी हम ड्राइव करते हैं सड़कों पर ऐसे शौकीनों में से एक न एक हमें चकमा देता हुआ कलाबाज़ियाँ दिखाता साफ़ निकल जाता है। बल्कि कभी निकल जाता है और कभी दो चार को साथ लेकर सीधे परमात्मा की दुनिया में पहुँच जाता है। ऐसी घटनाएँ अक्सर देखने में आती हैं।
सभी पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-7726242295229534352011-04-25T18:10:00.001+04:002022-11-30T14:02:52.700+04:00प्रवासी होते चमत्कारआज के अखबार में नोरा की तस्वीर मुखपृष्ठ पर है। नोरा पाँच साल की एक बिल्ली है जो पियानो बजाती है। इसी साल जून में नोरा ने एक लिथुआनी संगीत निर्देशक, मिंदौगस पिकैटिस के निर्देशन में अपना पहला एकल संगीत प्रदर्शन किया। यह कंसर्ट विशेष रूप से नोरा के लिए तैयार किया गया था। पिकैटिस ने इसका नाम कंसर्टो की तर्ज़ पर कैटसर्टो रखा। इसकी एक फ़िल्म भी बनाई गई जिसे http://www.catcerto.com/पर प्रदर्शित किया गयापूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-16911531575544468912011-04-18T08:40:00.004+04:002022-11-30T14:02:10.418+04:00बदरिया सावन कीबचपन की जो चीज़ें अभी तक मुझे याद हैं उसमें से एक है जूथिका राय की आवाज जो अक्सर छुट्टी के दिनों पिताजी के रेकार्ड चेंजर पर सुनाई देती थी। आज के डिजिटल युग के बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि रिकार्ड चेंजर क्या चीज़ होती है। ग्रामोफोन और टेपरेकार्डर के बीच की कड़ी, यह एक ऐसी मशीन थी, जिसमें कई रेकार्ड अपने आप एक के बाद एक बजते थे। रेकार्ड चेंजर का चलना हमारे लिए उत्सव समय होता था। परिवार के सभी पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-71894523427973132492011-04-12T08:04:00.002+04:002022-11-30T14:03:14.891+04:00अकेलेपन का अँधेरा
पिछले सप्ताह एक शाम शहर के एक जानेमाने रेस्त्राँ में जाना हुआ। रेस्त्राँ कुछ खाली-खाली सा था। शाम के सात बजे थे और यह समय इमाराती रेस्त्राओं में भीड़-भाड़ वाला नहीं होता। अपने खाने का आर्डर देकर हम प्रतीक्षा करते हुए बातचीत में लगे थे कि वेटर को एक छोटा सा बर्थ डे केक ले जाते हुए देखा। हमारे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई, शायद किसी का जन्मदिन होगा। यह रेस्त्राँ काफ़ी बड़ा है और एक कोने से हर कोना पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-67942649142676803112011-04-04T18:09:00.003+04:002022-11-30T14:03:28.581+04:00दौड़ से दूरकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय एक रचना में कहते हैं- लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते, जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घरकिन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें, बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।
घर का छोड़ना अक्सर फ़ायदेमंद होता है। आरामगाह से निकलकर ही तो हम दुनिया से लड़ने के लायक बनते हैं। पर आजकल की छोटी सी दुनिया में प्रतियोगिता और स्पर्धा के लिए दौड़ने-भागने की प्रवृत्ति संक्रामक रोग की तरह फैलने लगी है। फिर दौड़पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-27436181504468839432011-03-28T09:53:00.007+04:002022-11-30T14:03:42.802+04:00मंदी की ठंडी में उपदेशों की बंडी
मार्च का महीना है, बदलते मौसम का ख़ुमार और बुखार दोनों फ़िजां में हैं। वसंत की सेल में खरीदारियों से इमारात के बाज़ार गरम हैं लेकिन मंदी की ठंडी से देश की नसों में पैदा हुई थरथराहट अभी थमी नहीं है। विज्ञापन की चाबुक नई पीढ़ी को ऐसा हाँकती है कि कितने भी पैसे जेब में आएँ महीने का अंत होता है फाकामस्ती से। इसके विरुद्ध कमर कसने के लिए स्थानीय अखबार ने एक अभियान चलाया है जिसका नारा है वाओ (WOW)। पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-28141339204231486922011-03-23T15:29:00.009+04:002022-11-30T14:03:55.740+04:00पान बनारस वाला1
खानपान हो, आनबान हो, जान पहचान हो और पान न हो तो ओंठों पर मुस्कान नहीं, पर यह पान बरसों से इमारात में सरकारी आदेश से बंद है। बंद इसलिए कि पान गंदगी फैलाता है। कोनों और स्तंभों के उस सारे सौंदर्य को मटियामेट कर देता है जिस पर यहाँ की सरकार पैसा पानी की तरह बहाती है।
सारी बंदी के बावजूद पान प्रेमी पान ढूँढ लेते हैं और गंदगी फैलाने से बाज़ नहीं आते। इस सबसे निबटने के लिए यहाँ के एक प्रमुख अखबार पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-46830071320418965282011-02-25T19:51:00.003+04:002022-11-30T14:50:23.314+04:00सड़कों परसड़कों पर हो रही सभाएँराजा को-धुन रही व्यथाएँप्रजाकष्ट में चुप बैठी थीशासक की किस्मत ऐंठी थीपीड़ा जब सिर चढ़कर बोलीराजतंत्र की हुई ठिठोलीअखबारों-में छपी कथाएँदुनिया भरमें आग लग गईहर हिटलर की वाट लग गईसहनशीलता थक कर टूटीप्रजातंत्र की चिटकी बूटीदुनिया को-मथ रही हवाएँजाने कहाँसमय ले जाएबिगड़े कौन, कौन बन जाएतिकड़म राजनीति की चलतीसड़कों पर बंदूक टहलतीशासक की-नौकर सेनाएँपूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-78807189206648701252011-02-18T14:50:00.009+04:002022-11-30T14:50:34.877+04:00फागुन के दोहे1 ऐसी दौड़ी फगुनहट ढाणी चौक फलांग।फागुन आया खेत में गये पड़ोसी जान।।आम बौराया आँगना कोयल चढ़ी अटार।चंग द्वार दे दादरा मौसम हुआ बहार।।दूब फूल की गुदगुदी बतरस चढ़ी मिठास।मुलके दादी भामरी मौसम को है आस।।वर गेहूँ बाली सजा खड़ी फ़स़ल बारात।सुग्गा छेड़े पी कहाँ सरसों पीली गात।।ऋतु के मोखे सब खड़े पाने को सौगात।मानक बाँटे छाँट कर टेसू ढाक पलाश।।ढीठ छोरियाँ तितलियाँ रोकें राह वसंत।धरती सब क्यारी हुई पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-91233461246373469572011-01-26T09:32:00.007+04:002022-11-30T14:04:09.747+04:00स्वागत २०११गणतंत्र दिवस शुभ हो साथ ही नव वर्ष में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की ढेरों शुभकामनाएँ! मंगलकामनाओं के इस दौर के साथ अभिव्यक्ति की सहयोगी पद्य-पत्रिका अनुभूति १ जनवरी को अपने जीवन के १० वर्ष पूरे कर रही है। इन दोनों पत्रिकाओं के निर्माण, संयोजन, संचालन और पठन-पाठन में लगे उन असंख्य लोगों का हार्दिक आभार जिनके सहारे इतना रास्ता पार कर ये दोनो पत्रिकाएँ यहाँ तक पहुँची हैं।पुराने वर्ष के अवसान के साथ पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-4144967938527656152010-08-14T12:34:00.003+04:002022-11-30T14:22:00.962+04:00अभिव्यक्ति दस साल की
इस सप्ताह स्वतंत्रता दिवस के शुभ दिन अभिव्यक्ति, ४५०वें अंक के साथ अपने जीवन के दस वर्ष पूरे करेगी। इसका पहला अंक १५ अगस्त २००० को प्रकाशित हुआ था। पत्रिका का प्रारंभ मासिक पत्रिका के रूप में हुआ था पर जल्दी ही यह पाक्षिक और फिर साप्ताहिक रूप में प्रकाशित होने लगी।
पाठकों के अपरिमित स्नेह, साथियों के निरंतर सहयोग और रचनाकारों के कर्मठ उद्यम के लिये कृतज्ञता प्रकट करने का इससे उपयुक्त समय और पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-26211622098620998742010-06-09T21:30:00.005+04:002022-11-30T14:35:16.731+04:00मन के मंजीरेभारत में शायद शांति देवी के विषय में बहुत कम लोग जानते होंगे लेकिन इमारात में पिछले सप्ताह "गल्फ न्यूज" नामक समाचार पत्र की "फ्राइ डे" नामक साप्ताहिक पत्रिका में वे व्यक्तित्व के अंतर्गत छाई रहीं। शांति देवी दिल्ली की ओर जाने वाली एक प्रमुख सड़क पर स्थित अपने छोटे से गैरेज में पति के साथ ट्रक मैकेनिक का काम करती हैं। उनका कहना है कि लोग उनको ट्रक मैकेनिक का काम करता हुआ देखकर अचरज करते हैं लेकिन पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-7269324341401638902010-05-26T13:47:00.005+04:002022-11-30T14:35:29.428+04:00कैसी कैसी कार चोरियाँ
यों तो इमारात में गर्मी का मौसम अभी शुरू नहीं हुआ है पर दोपहर में इतनी गरमी ज़रूर हो जाती है कि बंद कार अगर आधा घंटा धूप में खड़ी रह जाए तो उसे फिर से ठंडा होने में १५ मिनट का समय लग जाए। इससे बचने के लिए अक्सर लोग ए.सी. खोलकर कार में ताला लगाए बिना दूकानों में चले जाते हैं ताकि वापस लौटने पर कार ठंडी मिले। कभी कभी लोग घर से निकलने के १०-१५ मिनट पहले कार चालू कर देते हैं ताकि यात्रा शुरू करने सेपूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-17073561157018423992010-05-17T08:39:00.008+04:002022-11-30T14:35:46.569+04:00प्रयास- ऐल्ते विश्वविद्यालय की साहित्यिक पहलविदेशों में भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा से जुड़ने का जो अनुशासन दिखाई देता है वह इससे जुडी प्राचीन विद्याओं के प्रति उनके आध्यात्मिक लगाव और समझ को व्यक्त करता है। पिछले सप्ताह हंगरी की राजधानी बुदापैश्त के ऐल्ते विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में इसका अनुभव एक बार और हुआ।
यह विभाग 'प्रयास' नाम से हिंदी में एक त्रैमासिक भित्ति पत्रिका का प्रकाशन करता है। इसमें ऐल्ते और पेच विश्वविद्यालयों के पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-89494079223060327642010-04-13T11:30:00.004+04:002022-11-30T14:35:59.892+04:00कोहरे की नदी
समय और स्थान बदलने से बहुत सी धारणाएँ किस तरह बदल जाती हैं इसका आभास पिछले कुछ सालों में गहराई से हुआ है। पृथ्वी जैसी ज़मीन से दिखती है वैसी ही तीसवीं मंज़िल से नहीं दिखती इसका आभास भी बहुत से लोगों को होगा। हम सब यह भी जानते हैं कि पहाड़ी शहरों में बादल खुली खिड़कियों से कमरे में आ जाते हैं और अक्सर नीचे घाटियों में तैरते दिखाई देते हैं या कोहरा घाटी से उठता है और आकाश में जम जाता है। मैदानी पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-10907309862852336342010-04-09T22:55:00.008+04:002022-11-30T14:36:13.362+04:00चमकते सितारे उड़ते लश्कारेयह चेहरा कुछ पहचाना सा है न? अनिल कपूर ही तो हैं, शायद किसी भूमिका के लिए वज़न कुछ बढ़ाया गया है। मैंने भी पहली नज़र में यही सोचा था, लेकिन सोच सही नहीं निकली। ये अनिल कपूर नहीं अरबी दुनिया के लोकप्रिय पॉप गायक राघेब अल्लामा है। पिछले दिनों इनके अमर दिआब के साथ विवाद के चर्चे अखबारों में खूब छपे। जल्दी ही सब कुछ शांत हो गया और दोनो दोस्त बन गए। ठीक वैसे ही जैसे हमारे बॉलीवुड में होता है। जहाँ पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-3108442339658224262010-03-04T19:52:00.003+04:002022-11-30T14:36:40.637+04:00देसी होली विदेशी सुगंध
पिछले दिनों दुबई एअरपोर्ट पर खरीदारी करते मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं जब मैंने केंज़ो अमोर की शेल्फ़ पर हिंदी में नाम लिखी परफ्यूम की एक बोतल देखी। न मुझे केन्ज़ो का मतलब मालूम है न अमोर का। मुझे सिर्फ इतना मालूम है कि हाउस ऑफ केंज़ो सुगंध के क्षेत्र में एक जाना-माना फ्रांसीसी ब्रांड है, जिसकी शेल्फों पर फैशनेबल महिलाएँ अक्सर जमी ही रहती हैं। मुझे ऐसी चीज़ों में आमतौर पर दिलचस्पी नहीं महसूस पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-81212187348985630072010-02-18T23:43:00.008+04:002022-11-30T14:36:54.258+04:00वसंत की शुभकामनाएँ जब हम छोटे थे तो समझते थे कि वसंत पंचमी से लेकर होली तक वसंत की ऋतु होती है। वसंत के दिन नए पीले कपड़े पहनते थे पीले मीठे चावल घर में बनते थे और दोपहर भर किसी पुष्प प्रदर्शनी में फूलों की दुनिया की सैर करते दिन कट जाता था। इस दिन के आते ही होली की तैयारियाँ भी शुरू हो जाती थीं। अनिर्वचनीय उल्लास सा भरा रहता था मन में। फ़िक्र होती थी तो सिर्फ़ एक- परीक्षाओं की। अब ये अनुभव पुरानी पीढ़ी के हो गए। पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3627654484063710786.post-31687298629018058142010-02-13T17:59:00.007+04:002022-11-30T15:10:39.786+04:00दुनिया रंग रंगीलीबहुत दिनों से इमारात के बारे में कुछ नहीं लिखा। यहाँ वर्षा का कोई मौसम नहीं होता। लेकिन सर्दियों में एक सप्ताह बारिश होती है। कभी तेज़ कभी बूँदा बाँदी। हालाँकि साल भर की यह ज़रा सी बारिश भी लोगों को अच्छी नहीं लगती। एक तो इसलिए कि इससे सर्दी बढ़ जाती है और तापमान दस डिग्री या उससे नीचे उतर जाता है जो इस वसंत ऋतु जैसी मोहक सर्दियों में बिलकुल भी नहीं भाता दूसरे सजे सजाए बगीचे सत्यानाश हो जाते हैं।पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com9