सोमवार, 18 मई 2009
यार ख़ैयार
गरमी की तपन और ख़ैयार (या ख़ियार) की तरावट का मज़ा वही जान सकता है जो इमारात में रहता है। ख़ैयार अरबी खीरा है जो यहाँ हर मौसम में मिलता है और तरह तरह से खाया जाता है। चाहे ख़ैयार-बि- लबान बनाएँ, मास्त-ओ-ख़ैयार बनाएँ या बोरानि-ए- ख़ैयार बनाएँ यह सब मिलते जुलते व्यंजन है जिन्हें खीरे को दही और पुदीने के साथ मिलाकर बनाया जाता है।
ज़ाहिर है इमारात की गरमी में दही और पुदीने के साथ मिली खीरे की तरावट का जवाब नहीं। ख़ैयार का अचार भी बनता है। कोई अरबी दावत ऐसी नहीं जो ख़ैयार के बिना पूरी हो। कोई सब्ज़ी की दूकान, कोई सुपर मार्केट कोई परचून की दूकान ऐसी नहीं जहाँ ख़ैयार न मिलता हो। रहीम दादा कह गए हैं-- खीरा मुख से काट कर मलियत लोन लगाय, लेकिन ख़ैयार तो जन्मा ही मीठा है। न मुख काटने की ज़रूरत न लोन मलने की। छिक्कल भी बिलकुल पतला जिसे छीलने तक की ज़रूरत नहीं बस खरीदो और खा लो।
कुदरत ने इस देश को गरमी की सज़ा के साथ मीठे स्वादिष्ट ख़ैयार का वरदान दिया है। यहाँ शायद ही कोई घर हो जहाँ ख़ैयार रोज़ न खाया जाता हो। देखने में भारत की चिकनी तुरई जैसी शक्ल वाला ख़ैयार इमारात में हर मौसम का यार है। इस देश में जीना है तो ख़ैयार से यारी बड़े काम की है क्यों कि ख़ैयार इस देश की आत्मा है और आत्मा के बिना भी कोई ज़िन्दगी होती है।
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12 टिप्पणियां:
आह मज़ा आ गया। आज दो दिनों से हमारे यहाँ भी सूरज निकला है। आपकी पोस्ट ने तरोताज़ कर दिया।
पूर्णिमा जी, शक्ल तो इसकी भारतीय खीरे जैसे ही है लेकिन इसकी तासीर जैसा कि आपने बताया ज़रा अलग है...भारतीय खीरा भी गर्मी में राहत देता है लेकिन उसमें मिठास नहीं होती...इमारात में खियार की भूमिका की अच्छी जानकारी दे दी आपने...बढ़िया पोस्ट....मज़ा आ गया...
पूर्णिमा जी ,
आपके द्वारा दी गयी जानकारियों से नए व्यंजनों के साथ ही नए शब्दों से भी मुलाकात
हो जाती है ...अच्छी पोस्ट .
हेमंत कुमार
गरमी में यह ताज़गी!! आभार.
ऐसी ऐसी पोस्ट अपलोड न किया करें..
मुंह में पानी आ जाता है :-)
खैयार देखने में खीरे जैसा लगता है और गुण भी वैसे ही हैं क्या स्वाद भी है वैसा ही ।
जहाँ मैं बैठा आपक ये पोस्ट और इस पर की तमाम टिप्पणियां पढ़ रहा हूँ, कंबल में लिपटा हूँ.... :-)
खीरे के बगैर तो मुझे दिन का भोजन कभी नहीं भाया
कभी देखेंगे चख कर इस खियारे को।
kudarat ka tohfA Hhi hai khaiyaar kaash ki ye hidustan me bhi ugaya jata :)
गर्मी के दिनों में ताज़गी का एहसास कराने वाली पोस्ट
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चाँद, बादल और शाम
अमीरात के खीरे, कभी जाना हुआ, तो जरूर खाए जाएंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मई की दोनों पोस्ट मुँह में पानी लाने वाली हैं… इधर भरी गर्मी में ऐसी पोस्ट पढ़कर हुश्श्श हो गये हम तो… :)
पूर्णिमाजी
एक आध व्यंजन बनाने की विधि भी लिख डालतीं ,हम देसी माने रहिमन खीरे पर ही आजमा लेते,खैर विविधता मिली आपके ब्लॉग पर।बधाई
श्याम सखा
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