रविवार, 28 अक्टूबर 2007

चोंच में आकाश

एक पाखी
चोंच में आकाश लेकर
उड़ रहा है

एक राजा प्रेम का
इक रूपरानी
झूलती सावन की
पेंगों-सी कहानी
और रिमझिम
खोल सिमसिम
मन कहीं सपनों सरीखा
जुड़ रहा है

एक पाखी
पंख में उल्लास लेकर
उड़ रहा है

जो व्यथा को
पार कर पाया नहीं
वह कथा में
सार भर पाया नहीं
छोड़ हलचल
बस उड़ा चल
क्यों उदासी की
डगर में मुड़ रहा है

एक पाखी
साँस में विश्वास लेकर
उड़ रहा है

5 टिप्‍पणियां:

prerna argal ने कहा…

जो व्यथा को
पार कर पाया नहीं
वह कथा में
सार भर पाया नहीं
छोड़ हलचल
बस उड़ा चल
क्यों उदासी की
डगर में मुड़ रहा है

एक पाखी
साँस में विश्वास लेकर
उड़ रहा हैbahut hi gaharai liye hue saarthak rachanaa.badhaai.



please visit my blog thanks.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

एक पाखी
साँस में विश्वास लेकर
उड़ रहा है

बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह कविता.

आपकी यह पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर आज लिंक की गयी है.
आपके सुझावों का स्वागत है.

धन्यवाद.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

एक पाखी
साँस में विश्वास लेकर
उड़ रहा है

बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह कविता.

आपकी यह पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर आज लिंक की गयी है.
आपके सुझावों का स्वागत है.

धन्यवाद.

Anupama Tripathi ने कहा…

ati sunder ...
shabd kam hain taareef ke liye....!!

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

जो व्यथा को
पार कर पाया नहीं
वह कथा में
सार भर पाया नहीं
छोड़ हलचल
बस उड़ा चल
क्यों उदासी की
डगर में मुड़ रहा है

सुंदर भाव....