सोमवार, 24 अगस्त 2009

दादा विंसी के शेर का पुनर्जन्म


दादा विंसी को तो आप जानते ही होंगे, अरे वही अपने विंसी दा.... जिन्हें इतालवी भाषा में दा विंसी कहते हैं। हाँ हाँ वही जिन्होंने मोनालीसा और लास्ट सपर नाम के प्रसिद्ध चित्र बनाए हैं। यों तो वे गणितज्ञ, इंजीनियर, अन्वेषक बहुत कुछ थे पर उनके द्वारा बनाए गए कुछ खिलौने तकनीक और कला के अनुपम उदारण माने जाते हैं। इन्हीं में से एक था शेर, जो आकार में असली शेर के बराबर था, वह चलता था, मुँह खोलता था सिर को इधर उधर घुमाता था और दुम भी हिलाता था।

१४०० के युग में जब जब मानव का मशीनी ज्ञान इतना विकसित नहीं था यह खिलौना किसी आश्चर्य से कम न था। यह अद्भुत खिलौना वर्ष १५१५ में विंसी ने फ्लोरन्टाइन समाज की ओर से फ्रेंच नगर लियोन में फ्रांस के शासक फ्रांसिस प्रथम को फ्लोरेंस और फ्रांस के बीच हुए एक समझौते के अवसर पर भेंट किया था। कहते हैं कि इसके साथ एक मशीनी कोड़ा भी था। जब इस कोड़े से फ्रांसिस शेर को तीन बार मारता था तब शेर का सीना खुल जाता और फ्रांस राजशाही का प्रतीक चिह्न बाहर आ जाता। यह उपहार प्रतीकात्मक भी था। शेर फ्लोरेंस राजशाही का प्रतीक था और इस खिलौने के द्वारा यह प्रकट किया गया था कि फ्रांस फ़्लोरेंस के सीने में बसता है। १५१७ में राजा की शान में दिए गए शानदार प्रीतिभोज में इसे एक बार फिर देखा गया था।

समय के साथ यह चलने वाला लकड़ी का शेर कहाँ गुम गया इसकी विस्तृत जानकारी नहीं मिलती। लेकिन फ्रांस के एंबोइस नगर में स्थित क्लोस ल्यूस संग्रहालय में, विंसी के कार्यों पर आधारित, ३१ जनवरी २०१० तक चलने वाली एक लंबी और महत्त्वपूर्ण प्रदर्शनी के लिए, इसे रेनाटो बोरेटो नामक इंजीनियार ने फिर से बनाया है। रेनाटो के शेर में पुरानी घड़ियों की तरह चाभी भरी जाती है। पुनर्निर्माण में दा विंसी द्वारा लिखी हुई जानकारी और नक्शों की सहायता भी ली गई है। क्लोस ल्यूस संग्रहालय का विंसी से गहरा संबंध हैं। यह उनका निवास स्थान रहा है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम तीन वर्ष यहीं बिताए थे। बाद में इसे संग्रहालय का रूप दे दिया गया। दा विंसी की अनुपस्थिति में उनके द्वारा विकसित तकनीक से बना यह शेर पुनर्जीवित होकर अपने दर्शकों के स्वागत के लिए तैयार है। अगर आप भी इसे देखना चाहें तो काम करता हुआ तकनीकी ढाँचा यहाँ और चलता हुआ खिलौना यहाँ देख सकते हैं।

8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Dada vinsi ka prasang padh kar achchha laga.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।

बेनामी ने कहा…

विंसी जी के बारे में जानकर अच्छा लगा. .

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

aap ka lekh khojpoorn hai ... bahut achchha laga

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

दा विंची के चित्र ‘द लास्ट सपर’ पर तो जोरों की बहस भी चल रही है। उनके शेर को हम से शेयर करने के लिए आभार॥

विनीता का चिट्ठा ने कहा…

क्या बात है पूर्णिमा जी, दा विंसी आपके दादा कबसे कबसे हो गए? ;)

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

दुनिया का हर जीनियस अपना दादा है, भई-- :)

Vinay ने कहा…

बढ़िया जानकारी है
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Asha Joglekar ने कहा…

दादा मोनी के तर्ज पर दादा विंची । उनके शेर के बारे में अच्छी जानकारी दी आपने ।