चीन ने पूरी दुनिया को अपने अधिकार में किया हुआ है। कभी वह धरती की सीमाएँ लाँघता है, कभी बाज़ारों में घुसता है तो कभी अखबारों के मुखपृष्ठों पर। अब आज का ही समाचार पत्र देखें, मुखपृष्ठ पर बाबा हान सूशो बकइयाँ खड़े हैं। चीन के इस बुज़ुर्ग का कहना है कि बकइयाँ चलना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। बहुत से लोग तो अभी तक बकइयाँ शब्द को भी भूल चुके होंगे। बच्चे भी आजकल बकइयाँ कहाँ चलते हैं वे तो सीधे वॉकर में दौड़ते हैं। बस यहीं से शुरू होती है सारी गड़बड़। वाकर से कार और कार से बीमार।
पिछले चौदह वर्षों से लगातार शोध में लगे बहत्तर वर्षीय बाबा सूशो कहते हैं कि खड़े होकर चलना बहुत से रोगों को दावत देता है। इससे बचने के लिए मनुष्य को दिन में कुछ पल पशुओं की तरह चलना आवश्यक है। वे स्वयं भी इस नियम का सख्ती से पालन करते हैं और रोज सुबह उन्हें बीजिंग के बेईहाई पार्क में शांत मुद्रा में झुके, दस्ताने पहने हाथों को धरती पर रखते, कूल्हों को आकाश की ओर सीधा उठाए चलते देखा जा सकता है। वे इस कला की शिक्षा भी देते हैं। उनका कहना है कि बकइयाँ चलने के उनके इस योग शास्त्र में वनमानुष, हाथी और कंगारू जैसे पशुओं के चलने की मुद्राओं को शामिल किया गया है। इस कला के विकास की आवश्यकता उन्हें तब पड़ी जब उनकी तमाम बीमारियों के सामने डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। रीढ़ और दिल के कष्ट, माँसपेशियों के दर्द तथा उच्च-रक्तचाप की तकलीफों का सामना करने के लिए बाबा सूशो ने बढ़ई की अपनी लगी-लगाई नौकरी छोड़ी और स्वास्थ्य के लिए कमर कसी। शाओलिन कुंफ़ू में पशुओं की कुछ मुद्राओं से प्रभावित होकर उन्होंने पशुओं की तरह चलने की इस कला का विकास किया, जिसमें पाँच पशुओं की चालों को आधार बनाया और अपने कष्टों से छुटकारा पाया। ज़ाहिर है बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेकर बिना दवाओं के ठीक होना चाहते हैं। उनका दावा है कि इससे रीढ़ की हड्डी और रक्तसंचार में अकल्पनीय सुधार आता है जिसके कारण एक सप्ताह में ही रोगी की दवाएँ की कम होने लगती है।
कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है। मानव जीवन का प्रारंभ बंदर से हुआ था। धीरे धीरे उसने दो पैरों पर खड़े रहना सीखा, पूँछ गायब हुई और वनमानुष इनसान बन गया। समय, संस्कृति और सभ्यता के साथ उसके रहन सहन और जीवन में परिवर्तन आए और अब विकास के बनावटी जीवन से परेशान बाबा सूशो, दुनिया को फिर से चौपाया बनने की राह दिखा रहे हैं। आ गए न घूम फिर के फिर वापस वहीं? स्वस्थ रहने के लिए लोग क्या नहीं करते? चौपायों की तरह चलना तो फिर आसान बात है। आशा रखें कि इस सबके बावजूद मानव, मानव ही बना रहेगा और पूँछ फिर से नहीं निकलेगी।
16 टिप्पणियां:
बाबा हान सूशो बकइयाँ लगता है उठक बैठक लगा रहे है . जोरदार .
बकइयाँ का मतलब ही नही पता था हमको तो..प्रैक्टिस करनी पड़ेगी..
उस चीनी व्यक्ति का विचार भी बहुत अच्छा है। मुख्य बात यह है कि आज के सुविधाभोगी जीवन में लोग पैदल चलना या स्वयं काम करना अपमान का प्रतीक मानते हैं। हालांकि कुछ लोग सुबह घूमने जाते हैं परउससे केवल टांगों को ही व्यायाम का लाभ मिलता है,ं जबकि शरीर के अन्य अंगों में भी घुमाव होना आवश्यक है और बहुत हद तक भारतीय योग साधना के आसन उसे पूरा करते हैं। उसमें भी समस्त अंगों में घुमाव आता है और सूर्य नमस्कार और सर्वांगासन इसके लिये बहुत उपयुक्त माना जाता है। कुल मिलाकर पूर्ण शरीर का व्यायाम होना चाहिऐ चाहे वह भारतीय योग पद्धति से हो या चीनी "बाबा की बकइयाँ" से।
दीपक भारतदीप
अभी हमें जानवरों से बहुत कुछ सीखना है
बाबा जूते देखो [शू शो] बकइयाँ [बयाँ-बयाँ]चलते है तो यह इशारा है कि चीन दुनिया से क्या चाहता है:)
अच्छा हुआ, पहले ही माडरेशन की घोषणा दिख गयी, वरना मैं तो टिप्पणी कर ही देता ।
वैसे यह लयबद्ध व्यायाम ’ताई-ची’ के अँतर्गत पहले से ही है, हाँ तो मैं बकईंया की बात करने जा रहा था ...
रोचक पोस्ट्!
अदभुत जानकारी।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
'बकैयाँ ' शब्द को आपने बहुत व्यापकता दे दी ......बधाई
बकैयाँ शब्द देख कर अच्छा लगा! शब्द बकैयाँ की तरह ही गायब हो गया हैं . अब तो बच्चे भी बकयियाँ नहीं चलते हैं ...बाबाजी ठीक ही बता रहें हैं .कुछ स्वस्थ्य प्रेमी तो चल भी चुके होंगे अब तक बकैयाँ.
Baba bakaeeyan ka ye ilaj hame to bahut pasand aaya.Abahr.
Baba bakaeeyan ka ye ilaj hame to bahut pasand aaya.Abahr.
पूर्णिमा जी,
बकइयां चलना ही क्या बच्चे बहुत कुछ भूलते जा रहे हैं----और बच्चे करें भी क्या उनके मां बाप की गलती है--न बच्चों को मिट्टी में खेलने देंगे,न जमीन पर बकइयां चलने देंगे,न तेल मालिश करेंगे,बुकवा मलना तो शायद --आज की माताओं को मालूम भी होगा कि नहीं----चलिये बाबा हान सूशो से ही कुछ सीख भारत वाले भी शायद ले लें---वैसे आपका प्रस्तुतिकरण का तरीका काफ़ी रोचक है।शुभकामनाओं के साथ्।
हेमन्त कुमार
Sundar...
बहुत ही रोचक और जानकारियां प्रदान करने वाला लेख्।
पूनम
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
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