मंगलवार, 29 जनवरी 2008
आवारा वसंत
पिछले दो दिनों से सर्दी की कड़की कम है, पंचांग कहता है कि वसंत पंचमी 11 फ़रवरी को है, यानी समय आगया वसंत की कविताओं की खोज का। पुरानी फ़ाइलें पलटती हूँ... मार्च 1979 की 3 कविताएँ हैं वसंत पर। बदलते मौसम और उनसे जुड़े पर्व जीवन में उल्लास भरते हैं लेकिन इनमें थोड़ी उदासी है। लगभग 30 वर्ष पुरानी इन तीन कविताओं में से एक आज पोस्ट कर रही हूँ। इसमें 'तरह' शब्द की वर्तनी को बदल कर 'तरहा' किया गया है। दरअसल कविता जब दिमाग में उपजी तो उसी उच्चारण के साथ जन्मी थी। लगा कि पाठक तक वह बात पहुँचनी चाहिए। बोलते समय हम भी कभी कभी 'तरह' को 'तरहा' कहते हैं। कहते हैं ना? कोशिश करूँगी कि बाकी दो कविताएँ भी वसंत के जाने से पहले यहाँ रख सकूँ।
हाँ अनुभूति का 11 फ़रवरी का अंक वसंत विशेषांक होगा। आप सभी की वसंत कविताओं का स्वागत है। वसंत का कोई भी रंग हो चलेगा, बस कविता 31 जनवरी की रात 12 बजे तक ज़रूर भेज दें पता है teamanu(at)anubhuti-hindi.org. आप फ़िलहाल आवारा वसंत का आनंद लें...मैं आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा में हूँ।
अबकी साल
वसंत यों ही आवारा घूमा
मेरी तरहा
कमरे से बगिया तक
बगिया से चौके में
चौके की खिड़की से
चमकीली नदिया तक
पटरी पटरी
दूर बहुत शिव की बटिया तक
मेरे ही संग ठोकर ठोकर रक्त रंगे ढाक के पावों
मौसम भी बंजारा घूमा
मेरी तरहा।
अबकी साल
वसंत यों ही आवारा घूमा
मेरी तरहा
पटरी से पर्वत तक
पर्वत से मंदिर में
अष्टभुजा घाटी से
संतों की कुटिया तक
सीढ़ी सीढ़ी
धुआँ धुआँ सीली आँखों में
पथ पर खुदे हुए नामों से मन के मिटे हुए नामों तक
हर इक पल रतनारा घूमा
मेरी तरहा
अबकी साल
वसंत यों ही आवारा घूमा
मेरी तरहा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
10 टिप्पणियां:
30 साल पहले की तरह क्या आज भी बसन्त आवारा ही है ?
ख़ैर कविता अच्छी लगी।
कहीं न कहीं, कुछ न कुछ आवारा तो होगा अन्नपूर्णा, समय के साथ आवारगी के रूप बदलते रहते हैं... टिप्पणी का शुक्रिया।
इस आवारगी को सलाम
30 saal mein basant vaisa hi hai,aawara basant,bahut sundar kavita.
बसन्त की आवारगी पसन्द आयी.........
मोहतरमा पूर्णिमा साहिबा
३० सालों के बाद आज भी आपके लिखे
बसंत की खुशबू और उसकी आवारगी
की महक तरो ताज़ा है
अल्लाह करे ज़ोरे कलम और---
चाँद हदियाबादी डेनमार्क
आवारगी चाहे वसंत की हो
या अनचाहे संत की
सदैव मस्त ही होती है.
वाह - देखिये शब्द अभीतक चटख हैं - बिल्कुल पीले नहीं हुए - सादर - मनीष
पीले तो होने चाहिये
ज़रूरी नहीं की पीला
पीलिया ही होता है
पीलापन वसंत की
भी पहचान है.
वाह क्या बात है
पीले शब्द.
दिखाई देंगे अब
रंग रंगीले शब्द
नहीं होंगे गीले शब्द
पीले पीले गीले शब्द
नहीं होंगे ढ़ीले शब्द.
बहुत सुंदर पूर्णिमा जी । आवारा वसंत पसंद आया ।
मेरे ब्लॉग पर भी वसंत की एक कविता डाली है आपके विचार जानना अच्छा लगेगा ।
एक टिप्पणी भेजें