मंगलवार, 28 जुलाई 2009

तब और अब


आजकल की चौड़ी सड़कों को देखकर, जिनमें कारों की ६-६ गलियाँ एक ही ओर जाती हों, कौन विश्वास करेगा कि सड़कों पर मस्ती वाले पल दुनिया के सबसे यादगार पल होते हैं।

धीरे धीरे किसी दुपहिया लंबे ठेले का गुज़रना और उसकी चूँ चाँ के साथ सुर मिलाते हुए लापरवाह चलते जाना। झरती हुई नीम की एक एक पत्ती को गिरने से पहले हथेली में रोक लेने की ज़िद में घंटों उसकी धूप-साया में गुज़ारना। कभी बड़ के घने पेड़ के नीचे चियें की गुठलियों से गोटियाँ बनाना और बंद हथेलियों में कौड़ियों की आवाज़ें सुनना। किसी बच्चे का पहिए को सरिया से घुमाते हुए चलते चले जाना सर्र् र्र् र्र्...।

कैसे सुस्त सुस्त आराम के दिन! हवाई चप्पलों में पैर अटकाए सारे दिन दौड़ते फिरना कभी इस घर कभी उस। दौड़ ऐसी कि जिसका अंत नहीं, दोस्ती ऐसी कि हर पल कट्टी और फिर भी जान गुइयाँ में ही अटकी। सड़क पर चोर-चोर खेलना और अनजान घरों के बरोठों में जा छिपना। न कोई डर न फ़िक्र।

बरसाती की खिड़की से दूर तक फैले बादल की बड़ी सी छाया को धीरे धीरे पहाड़ पार करते हुए देखना और ठंडा मीठा बर्रेफ़ की आवाज़ सुनते ही सीढ़ियाँ फलाँगते हुए नीचे आना, यह सब दूसरी दुनिया के दिन हो गए। लगता है जैसे पिछले जनम की बातें हों। वह शहर छूटे भी तो बरसों हो गए। सोचती हूँ फिर कभी लौटना हुआ और सब कुछ वैसा ही मिला तो क्या वैसी ही खुशी होगी?

सोमवार, 20 जुलाई 2009

या हबीबी!


दुबई में एक भारतीय के लिए सबसे हैरानी की बात यह है कि अक्सर अरबी लोग शाम को चार पाँच बजे मिलने पर गुड मार्निंग कहते हैं। तब समझ में नहीं आता कि अपनी होशियारी दिखाते हुए इसका उत्तर गुड ईवनिंग में दिया जाए या उनकी इज़्ज़त रखते हुए गुड मॉर्निंग कहा जाए। यह मुझे काफ़ी बाद में पता चला कि अरबी में गुड आफ्टर नून या गुड ईवनिंग के लिए शब्द नहीं हैं। वे सुबह से शाम के पाँच छे बजे तक, जब तक अँधेरा न हो जाए सबा अल ख़ैर या गुड मॉर्निंग ही कहते हैं। मिसा अल ख़ैर या गुड ईवनिंग का प्रयोग रात में ही होता है। हम भी हिन्दी में सुप्रभात और शुभरात्रि का प्रयोग काफ़ी करने लगे हैं पर दोपहर और शाम के लिए किसी अलग शब्द का प्रयोग आमतौर पर नहीं करते। यों भी हमारा नमस्ते सदाबहार है। हर समय हर किसी से कहा जा सकता है।

इसी प्रकार अरबी में एक शब्द है हबीबी। शायद दुनिया की किसी अन्य भाषा में ऐसा शब्द नहीं। हबीबी का हिन्दी अनुवाद प्रिय या मित्र हो सकता है लेकिन इस शब्द की सीमाएँ अनंत हैं। किसी से पहली बार भेंट हो तो भी उसको हबीबी कहा जा सकता है। ग्राहक दूकानदार को हबीबी कहता है और दूकानदार ग्राहक को, उम्रदराज़ महिलाएँ हर किसी को हबीबी कहती हैं और बच्चे भी ब‌ड़ों को हबीबी संबोधित करते हैं। फ़ोन पर हलो हबीबी कह देना आम बात है। अजीब तब लगता है जब अरबी लोग अँग्रेज़ी बोलते हुए उतनी ही सहजता से डियर शब्द का प्रयोग करते हैं। कुल मिलाकर यह कि अगर अरबी व्योमबाला या व्योम बालक आपको डियर कह दे तो बहुत खुश या नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं।

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

मौसम तरह तरह के



कुछ लोगों को यह सुन कर आश्चर्य होगा कि इस दुनिया में ऐसे देश भी हैं जहाँ वर्षा ऋतु नाम का कोई मौसम नहीं होता, न सावन का महीना न कल कल बहती नदियाँ और न हौले हौले चलती रेलगाड़ियाँ। अब बताइए इस देश की नायिका सावन के महीने में रेलगाड़ी से नदी पार कर आने वाले रिमझिम में भीगते नायक की प्रतीक्षा कैसे करेगी? जी हाँ मैं इमारात की बात कर रही हूँ। यह देश वर्षा ऋतु से बिलकुल अछूता है।

इसके विपरीत मध्य या पश्चिम यूरोप में रहने वालों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि भारत के लोग बारिश होने पर इतना खुश क्यों होते है, या बारिश का एक अलग मौसम कैसे हो सकता है? या फिर क्या साल के बाकी दिनों बारिश ही नहीं होती? उन लोगों को समझाना मुश्किल है कि गर्मी या सर्दी के मौसम में भारत में बारिश नहीं होती है। वर्षा का मौसम होता है और उसी में बारिश होती है यह अलग बात कि गलती से कभी सर्दी या गर्मी में बारिश हो जाय।

अलग अलग देशों के निवासियों के अलग अलग सवाल और सबको सब कुछ समझा पाना आसान भी नहीं। क्या आप विश्वास करेंगे कि गर्मियों की रातों को इमारात में इतनी ओस गिरती है कि सुबह उठने पर आँगन या लॉन पूरी तरह भीगे हुए मिलते हैं? लंबी लंबी उँगलियों वाली ताड़ की हथेलियाँ खूब सारी ओस समेट कर अपने जटा-जूट से लपेटे गए तने को तर कर लेती हैं और इस तरावट में सारी दोपहर हरी भरी और तरोताज़ा बनी रहती हैं।

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

धुंध में डूबा ग्रीष्माकाश


जुलाई अगस्त के महीने मध्यपूर्व में गर्मी के होते हैं। कभी ऐसी गर्मी देखी है जब आसमान कोहरे से ढक जाए? इमारात में पहली बार जब ऐसी धुंध देखी तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्योंकि भारत में तो धुंध सिर्फ सर्दियों के दिनों में होती थी। गर्मी के मौसम में यहाँ आमतौर पर पाँच-सात दिन ऐसे होते ही हैं। आज शारजाह में वही कोहरेवाला दिन है। दोपहर तक दुबई और शारजाह का कोहरा काफ़ी कुछ छँट गया था जबकि आबूधाबी में इसके दिनभर जमे रहने की संभावना जताई गई है। गर्मी भी कलेंडर देखकर आती है। जैसे इंतज़ार कर रही हो कि कब जून खत्म हो और कब वो अपने कदम धरा पर उतारे।

भारत में होने वाली मानसूनी बारिश खाड़ी के देशों में घनी नमी पैदा करती है। पिछले दो दिनों से नमी का स्तर बढ़ कर ९० प्रतिशत तक पहुँच रहा था। शाम को बाहर टहलना पसीने में नहाने जैसा था। नमी से तापमान में तेज गिरावट हुई और आज मौसम पर धुंध छा गई। समाचार है कि कुवैत, सऊदी और ईराक की ओर से उठने वाली उत्तर पश्चिमी हवाओं से बना धूल का तूफ़ान इमारात की ओर बढ़ रहा हैं। यह तूफ़ान आगामी तीन दिनों तक साँस की तकलीफ़ वालों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है पर शुभ समाचार यह है, कि पिछले दो दिनों में ५० डिग्री सेलसियस से ऊपर चढ़ता हुआ अधिकतम तापमान, आने वाले तीन दिनों तक ४० डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जाएगा। नमी का स्तर भी कम होकर ५५ प्रतिशत पर आ गया है। सो गर्मी की तंग साँस में राहत पाकर लोग भी सड़कों पर आ गए हैं देखिए चित्र में एक नवयुवक किस तरह के हथियारों से लैस होकर गर्मी का आनंद ले रहा है।

नमी, धुंध और रेत के तूफ़ान खाड़ी देशों के लिए कोई नई बात नहीं लोग इनका जमकर मज़ा लूटते हैं। जरा पारा ४० डिग्री पर पहुँचा नहीं कि समुद्र तटों बाज़ारों, फुहारों और आइस्क्रीम की दूकानों पर मेले लग जाते हैं। अखबार छापते रहते हैं कि गर्मियों में सुरक्षित कैसे रहें- छाता हमेशा साथ रखें... त्वचा को नम रखने के लिए कोई क्रीम लगाएँ... पुदीना, इलायची या सौंफ़ चबाते रहें... तरबूज, नाशपाती और आम खाएँ... जूते की बजाय खुले सैंडिल पहनें और त्वचा जल जाए तो ठंडा पानी डालें। उत्तर भारत की सख्त गर्मीवाली लखनऊ या जयपुर की कड़ी दोपहर में घंटों धूप में घूमने के बावजूद त्वचा जलने का अनुभव मुझे कभी नहीं हुआ। पर यहाँ १० मिनट की धूप में ज़रा सा समय बाहर रहने पर ही कलाई के पास एक लाल चकत्ता उभर आया है। दवा लगाई है। पहले यह काला होगा फिर पपड़ी बनकर झर जाएगा। माँ बचपन में कहती थीं- धूप में मत घूमो काली हो जाओगी। अब मैं उनसे कहती हूँ- भारत की धूप रंग चाहे बदल दे पर जलाती नहीं है।

बुधवार, 1 जुलाई 2009

मोधेश की महिमा

इमारात में गरमियाँ आ गई हैं। गर्मियाँ यानी कमरों, बाज़ारों और मनोरंजन स्थलों में ए.सी. के अंदर बंद रहने का मौसम। पार्कों और सागर तटों को भूल जाने का मौसम। स्कूलों में गर्मी की छुट्टियाँ हो गई हैं और ज्यादातर प्रवासी अपने अपने देश को चले गए हैं। शहर सुनसान है और सड़कें शांत। इस सबके बावजूद बड़े-बड़े बाज़ार खरीदारों को आकर्षित करने के लिए सेल और मनोरंजन के अनोखे इंतज़ाम में लग गए हैं। नृत्य-संगीत, कलाबाज़ियों और रैफ़ेल ड्रा के ज़बरदस्त हंगामे जारी हैं। पूरी कोशिश है कि लोग घर में बंद होकर न रहें, मॉल में आकर पैसे फूँकें।


और इस सारे हंगामे को हवा देने के लिए मोधेश तपती दोपहर के ५० डिग्री सेल्सियस तापमान में शान से मुस्कराता हुआ हर साल की तरह में दुबई की सड़कों के किनारे आ खड़ा हुआ है। मोधेश दुबई के ग्रीष्म-कालीन व्यापार प्रमोशन यानी दुबई समर सरप्राइज़ेस का प्रतीक चिह्न है। बच्चों को इससे प्यार है और मध्यपूर्व में इसकी लोकप्रियता मिकी माउस से कम नहीं। हाँलाँकि यह मिकी माउस की तरह किसी कहानी का हिस्सा नहीं, शत-प्रति-शत व्यापार उत्सव का व्यापारिक प्रतीक है। इसका चमकीला पीला रंग दुबई की चटक धूप से मिलता है और यह स्प्रिंग वाले उस गुड्डे जैसा है जो डिब्बे का ढक्कन खुलते ही उछलकर बाहर आता है। इस दृष्टि से यह समर और सरप्राइज़ दोनों शब्दों का ठीक ठीक प्रतिनिधित्व करता है।


मोधेश अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है आश्चर्यजनक! लाजवाब!! इसके ताज में लगे सात नगीने इमारात के सात राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसकी रचना दुबई में काम करने वाले एक फ़िलीपीनो फ्रीलांस डिज़ाइनर रुमुलो मिक्लात ने २००१ में की थी। आज उन्हें भी इसकी लोकप्रियता को देखकर आश्चर्य होता है। कपड़ों से लेकर लिफ़ाफ़ों तक पर मोधेश छाया है। टीवी और मीडिया की बात तो जाने ही दें। दुबई का हर यात्री जो भी दुबई समर सर्प्राइज़ के दिनों में यहाँ आया है मोधेश की खुली बाहों और चौड़ी मुस्कान को कभी भूल नहीं सकता।