सोमवार, 26 जनवरी 2009

हिन्दी अंक अंग्रेज़ी अंक


हम सभी जानते हैं कि भारत की प्राचीन सभ्यता अत्यंत विकसित थी और हज़ारों वर्ष पूर्व अनेक ऐसे आविष्कार यहाँ हो चुके थे जिनको १६वीं शती के आसपास पाश्चात्य देशों ने अपने नाम पेटेंट करवाया। ऐसे अनेक आविष्कारों और विकासों के तथ्य और प्रमाण आज सार्वजनिक नहीं हैं लेकिन निर्विवाद रूप से सारा विश्व यह स्वीकार करता है कि आर्यभट्ट ने शून्य और दशमलव का आविष्कार किया तथा गणित का प्रारंभिक विकास भारत में ही हुआ। अपनी भाषा, संस्कृति और पूर्वज गणित-विशेषज्ञों के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए हमने २००८ से अभिव्यक्ति में देवनागरी अंकों का प्रयोग प्रारंभ किया था।

यह बहस तब शुरू हुई जब हम विकिपीडिया में अंकों की नीति निर्धारित कर रहे थे। हमने कहा कि यूरोप के तमाम देशों, जापान तथा सुदूर पूर्व के देशों ने अंग्रेज़ी अंको को अपनी अपनी भाषा को विकिपीडिया में स्थान दिया है और फिर भारत सरकार ने अंग्रेज़ी अंकों के सामान्य प्रयोग पर सहमति भी व्यक्त की है। भारत में ज्यादातर पत्र पत्रिकाएँ अँग्रेज़ी अंकों का प्रयोग कर रहे हैं। तो हम हिन्दी विकिपीडिया में भी क्यों न ऐसा ही करें। इस पर एक ब्रिटिश और एक फ्रांसिसी प्रबंधक ने आपत्ति दर्ज की, कि दूसरी भाषाओं की अंक प्रणाली अंग्रेज़ी के बाद विकसित हुई। इसलिए उन्होंने अंग्रेज़ी अंकों को अपनाया। जबकि अंकों का आविष्कार और गणित की तमाम शाखाओं का विकास सबसे पहले भारत में कम से कम इस बात को सम्मान देने के लिए आप हिन्दी में नागरी अंकों का प्रयोग कर सकते हैं। हमें वह सब करने की ज़रूरत नहीं जो सब कर रहे हैं बल्कि वह करने की ज़रूरत है जो उचित है। विकिपीडिया में चीनी, अरबी, फारसी, बांग्ला और तमाम भाषाएँ अपनी लिपि के अंकों का प्रयोग करती हैं, तो हम हिन्दी अंकों का प्रयोग क्यों नहीं कर सकते। अगर भारत में नागरी अंकों का प्रयोग घट रहा है तो उसके लिए काम करने की ज़रूरत है न कि जो हो रहा है उसके पीछे दौड़ने की। हमने मतदान का निश्चय किया और मतदान का नतीजा हिन्दी अंकों के पक्ष में रहा। यह निश्चय किया गया कि वैज्ञानिक फ़र्मूलों के लिए हम अँग्रेज़ी अंकों का प्रयोग करते रहेंगे ताकि विकि के आंतरिक लिंक न टूटें।

अंत में- क्या आप जानते हैं कि एम.एस.ऑफ़िस हिन्दी में नागरी अंकों को किसी भी फॉन्ट में स्थान नहीं दिया गया है। यानी अगर आपकी मशीन पर एम.एस.ऑफ़िस हिन्दी है तो आप हिन्दी अंक नहीं लिख सकते। संबंधित अधिकारियों से निवेदन है कि कम से कम किसी एक फॉन्ट में नागरी अंकों की व्यवस्था कर दें ताकि हिन्दी अंकों का प्रयोग करने वालों को निराश न होना पड़े।

13 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

आपके आलेख से सहमत हूँ . हिन्दी फॉण्ट की व्यवस्था हो तो अच्छा है . धन्यवाद.

रंजन (Ranjan) ने कहा…

सही कहा.

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

यूनिकोड़ हिन्दी में ये अंक लिखे जा सकते हैं। १,२.३.४.५.६.७.८.९.०
मैं ने यह अंक इनस्क्रिप्ट/हिन्दी ट्रेडीशनल की बोर्ड से आल्ट+कंट्रोल तथा अंग्रेजी अंक की कुंजी का उपयोग कर के टाइप किए हैं। एमएस वर्ड में भी हो जाते हैं।

dpkraj ने कहा…

यह गिनती तीन प्रकार की है।
0 1 2 3 4 5
0 1 2 3 4 5
I II III IV V

इसमें दूसरी तथा तीसरी अंग्रेजी और पहली हिंदी की प्रतीक है। यह तो पता नहीं आप भाषा में किस प्रकार की गिनती की बात कर रही हैं पर जरा ध्यान दें पहली और दूसरी में कोई अधिक अंतर नहींं । तीसरी गिनती रोमन लिपि में मानी जाती है पर दूसरी की लिपि कौनसी है यह तो पता नहीं पर उसके आधे से अधिक अक्षर देवनागरी से मिलते हैं। एक विद्वान का कहना है कि यह तो देवनागरी लिपि के ही हैं जिसे अंग्रेजी में अपनाया गया। मेरे विचार से इस विषय पर अधिक बहस की गुंजायश नहीं है कि हम दूसरी वाली पंक्ति पर ही अधिक लिख रहे हैं तो कोई बात नहीं और इसमें भाषा प्रेम कहीं आड़े नहीं आता। भारत गणित का जन्मदाता है और इसमें 0 का स्वरूप वैसा ही है जैसा देवनागरी में लिखा जाता है। बाकी अपने अपने विचार है पर यह बात स्पष्ट है कि इस विषय पर अधिक बहस की गुंजायश नहींदिखती।
दीपक भारतदीप

पी के शर्मा ने कहा…

पूर्णिमा जी को प्रणाम
देवनागरी अंकों का प्रयोग हिन्‍दी फोण्‍ट के साथ प्रयोग होना ही चाहिए। आपके विचार बिल्‍कुल सही हैं। मैं तो ये भी चाहता हूं कि हमारे देश के संगणक अभियंता 'कंप्‍यूटर इंजिनियर' हिन्‍दी विद्वानों, हिन्‍दी ज्ञाताओं की सहायता लेकर पूरा कंप्‍यूटर हिन्‍दीमय कर दें। ये हमारा और आपका दायित्‍व है कि हम वैज्ञानिक शब्‍दों का आविष्‍कार करें और उनको प्रचलन में लाएं।
गणतंत्र की हार्दिक शुभकामनाएं
बाकी ।

बेनामी ने कहा…

sahi sawal

P.N. Subramanian ने कहा…

नागरी अंकों के प्रयोग के लिए ब्रिटिश और फ्रांसीसी लोगों कि आपत्ति चकित कर रही है. हमें यह बताएँ कि नागरी लिपि अस्तित्व में कब आई? क्या नागरी में प्रयुक्त होने वाले अंक प्राचीन हैं. यह एक प्रकार से नये विवाद को जन्म देना होगा. राज भाषा अधिनियम में भी तथाकथित अँग्रेज़ी अंकों को ही मान्यता दी गयी है. "भारत सरकार ने अंग्रेज़ी अंकों के सामान्य प्रयोग पर सहमति भी व्यक्त की है" यह कथन भ्रामक है.
http://mallar.wordpress.com

विष्णु बैरागी ने कहा…

जहां तक मेरी जानकारी है, हमने अपने संविधान के अन्‍तर्गत, देवनागरी अंकों के स्‍थान पर अंगे्रजी के अंक आधिकारिक रूप से स्‍वीकार कर लिए हैं। एम.एस.आफिस में देवनागरी अंक न मिलने का यह भी एक कारण हो सकता है।

sanjay vyas ने कहा…

naagri ank hamaare parichay se hi baahar ho rahe hai. saamyik aalekh.

Smart Indian ने कहा…

हमें वह सब करने की ज़रूरत नहीं जो सब कर रहे हैं बल्कि वह करने की ज़रूरत है जो उचित है।
सही बात है. आलेख अच्छा लगा.

रंजना ने कहा…

सार्थक आलेख हेतु साधुवाद..
हमारी पीढी तक तो फ़िर भी हिन्दी/देवनागरी अंक इस्तेमाल में न सही पर कम से कम जानकारी में है,पर हमारे बाद वाली पीढी तो इससे एकदम अनभिज्ञ है.........यह पूर्णतः लुप्त न हो जाए ,इसके लिए इसके उद्धार का प्रयत्न तो आवश्यक है ही.

रामेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

हिन्दी अक्षरों की तरह से अंकों के अन्दर भी भारतीय ऋषि और महात्माओं ने अपने अपने अनुसार शक्तियों का विकास किया था,हिन्दी का प्रत्येक अंक अलग अलग ग्रह के अनुसार बनाया गया था,अंक १ की बनावट सूर्य किरण को पृथ्वी की तरफ़ झुका होना बताया गया था,अंक दो को चन्द्रमा की तरह २ बनाया गया था,और उसकी भी किरण को पृथ्वी की तरफ़ झुकना बताया गया था,अंक ३ को दोहरी मानसिकता और गुरु की उपाधि से दर्शाया गया था,अंक ४ को राहु के लिये ५ को बुध की तरह का अंक ६ को शुक्र के लिये और अंक ७ को केतु के लिये अंक ८ शनि के लिये अंक ९ को मंगल के लिये तथा शून्य को ब्रह्माण्ड के लिये प्रयुक्त किया गया था,उसका एक सीधा सा उदाहरण हिन्दू धर्म में माला के मनकों को गिनकर माना जा सकता है,१०८ मनकों की माला मे अन्दर शून्य ब्रह्माण्ड के एक तरह सूर्य रोशनी के रूप में और एक तरह शनि अंधेरे की तरह से अपनी अपनी स्थिति को दर्शाता है।

Jitendra Dave ने कहा…

Sateek aur samyik lekh. Bhai Raamchandra Bhadouriyaa ne toh sone pe suhaagaa lagaa diyaa. Bahut interesting jaankaari ke liye saadhuvaad.