मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

कोहरे की नदी


समय और स्थान बदलने से बहुत सी धारणाएँ किस तरह बदल जाती हैं इसका आभास पिछले कुछ सालों में गहराई से हुआ है। पृथ्वी जैसी ज़मीन से दिखती है वैसी ही तीसवीं मंज़िल से नहीं दिखती इसका आभास भी बहुत से लोगों को होगा। हम सब यह भी जानते हैं कि पहाड़ी शहरों में बादल खुली खिड़कियों से कमरे में आ जाते हैं और अक्सर नीचे घाटियों में तैरते दिखाई देते हैं या कोहरा घाटी से उठता है और आकाश में जम जाता है। मैदानी शहरों में रहने वाले यह भी जानते हैं कि सर्दी की ठंडी रातों में देर रात कोहरा फुहार की तरह बरसता है, लेकिन सुबह का कोहरा आसमान में नहीं ज़मीन में नदी की तरह बहता है उसका आभास पिछले दिनों दुबई के निवासियों को शायद पहली बार हुआ।

यह तो मैंने पिछले एक लेख में लिखा ही था कि इमारात में गर्मियों की कई सुबहें कोहरे से भरी होती हैं। इस बार दस मार्च को एक ऐसी ही सुबह थी। दुबई की बहुमंज़िली इमारतों में रहने वाले लोगों ने सुबह उठकर खिड़की के बाहर गहरी सड़क की जगह ऊपर तक उफनती कोहरे की एक नदी देखी। यों तो समंदर में आसमान तक भरे कोहरे, या शहर की सड़कों पर यातायात अवरुद्ध करते हुए कोहरे को हम सबने देखा है लेकिन नीचे की ओर सड़क में भरे कोहरे को देखने का यह अनुभव अनोखा था। ऐसा लगा जैसे खुले हुए प्राकृतिक स्थलों से इसे जबरदस्ती मार भगाया गया है और वह शहर की सड़कों में अट्टालिकाओं के बीच आ छुपा है। दोपहर दस बजे के बाद यह नदी धीरे धीरे घुलकर गायब हो गई। कहना न होगा कि लोगों ने इस दृश्य का जी भर कर आनंद लिया, फोटो खींचे और देर तक इसके साथ लगे रहे। समाचार पत्रों में भी अगले दिन कोहरे की इस नदी के खूब चित्र छपे। इन्हीं में से लिया गया एक चित्र ऊपर प्रस्तुत है। बड़ा आकार देखने के लिए चित्र को क्लिक करना होगा। आशा है प्रकृति का यह अनोखा सौंदर्य उन सबको लुभाएगा जिन्होंने ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा है।

जंगलों की ओर बढ़ते शहरों ने जिस तरह पशुओं को बेघर कर के शहर में बेघर घमने पर मजबूर कर दिया है आशा है उस तरह का हाल प्रकृति का नहीं होगा। नदियाँ सदानीरा बनी रहेंगी, पर्वत हरियाली संभाले रहेंगे, समंदर शहरों पर कहर नहीं ढाएँगे और कोहरे की नदी खिड़की पर आएगी तो, पर कुछ भी बहा नहीं ले जाएगी।

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

चमकते सितारे उड़ते लश्कारे

यह चेहरा कुछ पहचाना सा है न? अनिल कपूर ही तो हैं, शायद किसी भूमिका के लिए वज़न कुछ बढ़ाया गया है। मैंने भी पहली नज़र में यही सोचा था, लेकिन सोच सही नहीं निकली। ये अनिल कपूर नहीं अरबी दुनिया के लोकप्रिय पॉप गायक राघेब अल्लामा है। पिछले दिनों इनके अमर दिआब के साथ विवाद के चर्चे अखबारों में खूब छपे। जल्दी ही सब कुछ शांत हो गया और दोनो दोस्त बन गए। ठीक वैसे ही जैसे हमारे बॉलीवुड में होता है। जहाँ सितारे चमकेंगे वहाँ कुछ लश्कारे तो उड़ेंगे ही।

अरबी पॉप धमाकेदार संगीत है। इसकी ताल का जवाब नहीं। फिर भी यह माना होगा कि भारतीय फिल्मी संगीत जैसा दुनिया के किसी देश की फिल्मों का संगीत नहीं होता। शायद इसीलिए सारी दुनिया को पॉप संगीत की आवश्यकता होती है। अरबी पॉप की दुनिया काफ़ी बड़ी है जो मिस्र से लेकर लेबनॉन तक फैली है। राघेब मूलरूप से लेबनान के हैं और अमर दिआब मिस्र के और ये दोनो ही गायक इमारात में खूब लोकप्रिय हैं।

अमर दिआब ने अपनी सफलती की ऊँचाइयों को वर्ष 2000 में तब छुआ जब उनका एलबम तमल्ली मआक जारी हुआ। इसने अरबी दुनिया में खूब धूम मचाई। उस समय इमारात की हर संगीत की दुकान, सुपर मार्केट और कार में यही गीत दिन रात सुनाई देता था। केवल अरबी दुनिया ही नहीं यूरोप में भी इसे खूब लोकप्रियता प्राप्त हुई। हमारा भारत भी इसकी गूँज से नहीं बचा। बहुत से पाठकों को अन्नू मलिक द्वारा संगीतबद्ध किया मल्लिका शेरावत और इमरान हाशमी पर फ़िल्माया गया मर्डर फिल्म का एक गीत 'कहो न कहो' याद होगा। वह गीत इसी धुन पर आधारित था।

जो गीत इतना लोकप्रिय हो उसमें कुछ तो विशेष होता ही है। इस गीत में अरबी संगीत की जोशीली ताल को स्पैनिश गिटार के साथ प्रयोग में लाया गया है और ऐसा करते हुए गीत को जोशीला बनाने की बजाय बोलों के अनुरूप मधुर बनाया गया है। यही इस गीत की विशेषता है। यू ट्यूब पर खोजें तो इस गीत पर आधारित दो वीडियो मिलते हैं। एक में अरबी पृष्ठभूमि है तो दूसरे में यूरोपीय। यहाँ प्रस्तुत है अरबी पृष्ठभूमि वाले वीडियो की कड़ी। इसमें अरबी संगीत और नृत्य की झलक देखी जा सकती है। गिटार जैसा दिखने वाला थोड़ा छोटा और मोटा जो वाद्य बजाया जा रहा है वह ओउद है और स्वरमंडल जैसा एक दूसरा सफ़ेद वाद्य क़नून है। यह स्वरमंडल से थोड़ा बड़ा होता है और इसमें 75 तार लगे होते हैं। वीडियो के पूर्वार्ध में जिस तरह लोग नृत्य कर रहे हैं उसमें हाथों और पैरों को कुछ विशेष मुद्राओं में संचालित किया जा रहा है। ये दो तीन मुद्राएँ अरबी नृत्य की आधारभूत मुद्राएँ है और हर अरबी इन मुद्राओं में नृत्य करना जानता है। तो फिर देर किस बात की, वीडियो पर क्लिक करें और अरबी संगीत का आनंद लें। वीडियो देखते हुए अमर दिआब के चेहरे में किसी किसी कोण से कुछ लोगों को मिलिंद सोमन की झलक मिल सकती है। इसका एक और वीडियो यहाँ देखा जा सकता है।