मंगलवार, 8 सितंबर 2009

मुट्ठी में मौसम


ऊपर वाले ने इन्सान को छोटी सी मुट्ठी दी है और वैसा ही छोटा सा दिल। लेकिन इस छोटे से दिल में बड़ी से बड़ी असंभव और अज्ञात चीज़ को मुट्ठी में समेट लेने की इच्छा समय के साथ बढ़ती ही रही है। कभी ज़मीन पर अधिकार जमा लेने की इच्छा, कभी सागर को पार करने की, कभी पर्वत लांघने की, तो कभी नदियों को बाँधने की। वातानुकूलन द्वारा हम भवनों के अंदर के मौसम को भी नियंत्रित कर चुके है। विज्ञान की नई खोजों और तकनीक ने सबकुछ मुट्टी में कर लेने की इंसान की इस इच्छा का खूब साथ निभाया है। इसी क्रम में खुले आसमान के नीचे बर्फ और बारिश को नियंत्रित करने वाले कुछ प्रयोग जल्दी ही रूस के आम नागरिक के जीवन का हिस्सा हो जानेवाले हैं।

जिन्होंने मॉस्को की सर्दियाँ देखी हैं वे क्रेमलिन के सुनहरे गुंबदों पर झरती सफ़ेद बर्फ के सौंदर्य को भूले नहीं होंगे। किसी ग्रीक देवता की तरह सफेद आवरण में लिपटा इस शहर का यह पवित्र शारदीय सौन्दर्य एक नवीन योजना के अंतर्गत इतिहास में खो जाने वाला है। मास्को के नए नगरपौर, यूरी लुज़कोव ने नगर को बर्फ से मुक्त करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। श्रीमान लुज़कोव का कहना है कि बर्फ को नगर की सीमा से बाहर रहना चाहिए। अगर ऐसा हो सका तो शहर से लगे ग्रामीण क्षेत्रों को अधिक नमी मिलेगी जो कृषि के लिए बेहतर साबित होगी। दूसरी ओर शहर को बर्फ से मुक्त रखकर बहुत-सी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकेगी। रूस में क्लाउड-सीडिंग तकनीक द्वारा मॉस्को का आसमान साफ़ रखने के प्रयोग पहले से किए जाते रहे हैं और इसमें काफ़ी सफलता मिली है। लुज़कोव की इस योजना के अनुसार जब भी सर्दियों के सुहाने मौसम में रूस के इस महानगर पर बर्फ के बादलों को मँडराते हुए पाया जाएगा, उन्हें तकनीक के डंडे से मार भगाया जाएगा। वे कहते हैं कि नगरवासियो को इससे बहुत से लाभ मिलेंगे। घर को गर्म रखने के खर्च में कमी आएगी, सड़कों की सफ़ाई नहीं करनी पड़ेगी और यातायात समान्य रूप से जारी रहेगा। कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि बादल भगाने की इस परियोजना से नगर के बाहरी क्षेत्रों को अतिवृष्टि का समना करना पड़ सकता है। मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक इस परियोजना को व्यवहार में नहीं लाया जाता इसके परिणामों के विषय में पहले से भविष्यवाणी करना संभव नहीं है, फिर भी अनपेक्षित परिणामों के लिए कमर कसकर रहने की जरूरत है।

कुल मिलाकर यह कि छोटे से दिल में बड़ा सा सपना पालना तो आसान है पर उसे मुट्ठी में लेने से पहले सावधानी ज़रूर बरतनी चाहिए।

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सही कहा..बेहतरीन आलेख.

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

चाँद को हथेली पर रखने के सपने इंसान ने देखे और उन्हें पूरा भी किया ... प्रकिरती के खिलाफ जाके जहाँ इंसान ने बहुत पाया वहीँ खोया भी बहुत है .

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

"ऊपर वाले ने इन्सान को छोटी सी मुट्ठी दी है और वैसा ही छोटा सा दिल।"

मुट्ठी बंद और दिल खुला- यहीं से तो मानवता की सेवा शुरू हो सकती है:)

Atmaram Sharma ने कहा…

बहुत अच्छा लगा पढ़ते हुए.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये भी प्राकृति से खिलवाड़ है ........ ऐसे कई नए नए प्रयोगों का हर्ष प्राकृति पर कहर बन कर उतरा है ........... पता नहीं इसका फायदा होगा या नुक्सान ............ अच्छा लेख है आपका ...........

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आपकी पोस्ट को पढकर मास्को के मौसम का एहसास हो गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

सुशीला पुरी ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने .........पूर्णिमा जी .

कंचनलता चतुर्वेदी ने कहा…

सारगर्भित लेख......बहुत बहुत बधाई....

Asha Joglekar ने कहा…

yah Insan hee hai jo aise jajbe pal skata hai aur unhe poora bhe kar dikhata hai. Hats off to science. janha labh hai wahan kuch nuksan bhee hota hai par labh jyada ho to hani ko kum krane ke bare men socha ja sakta hai,