शाम घिरने के बाद घर से निकली हूँ। चौराहे पर बने फव्वारे के चारों ओर बिछी घास पर समुद्री बगुलों का झुंड अठखेलियाँ कर रहा है। रात के झुटपुटे में पार्क की तेज़ रौशनी के बावजूद दूर से इनके सिर, पैर और पूँछ नहीं दिखाई देते। टेनिस की गेंद जैसे सफ़ेद बुर्राक ये बगुले इमारात को गुलाबी सर्दी की देन हैं और शहर के हर प्राकृतिक नुक्कड़ को अपने सौंदर्य से भर देते हैं। मुश्किल से आठ इंच लंबे इन बगुलों के झुंड बहुत बड़े होते हैं। इस चौराहे पर बैठा झुंड शायद 50-60 से कम का नहीं होगा।
थोड़ा आगे बढ़ती हूँ तो सड़क के ऊपर बने पुल से नीचे की ओर फैली घास की ढलान पर ये सैकड़ों की संख्या में बैठे हैं। सब समान दूरी पर, एक ही ओर मुख किए हुए। इनको देखकर विश्वास हो जाता है कि ऊपरवाले ने बुद्धि और कौशल बाँटते समय मानव के साथ बड़ा पक्षपात किया है। यह अनुशासन, यह धैर्य बिना पुलिस और डंडे के हमारी दुनिया में मुश्किल है।
गई थी सब्ज़ी लेने आधे घंटे बाद मंडी के बाहर आई हूँ और देखती हूँ कि अभी भी वैसे ही बैठे हैं सब, अपनी मौन साधना में। शायद यही मुद्रा देखकर किसी ने इन्हें बगुला भगत कहा होगा।
दाहिनी ओर के चित्र में कैद झुंड थोड़ा छोटा है पर देखिए तो क्या अदा है... ऊपर वाले ने गर्दन पर थोड़ा पीछे एक काला टीका भी लगा दिया है। नज़र न लगे गोरे गोरे मुखड़े को... किसी ने बताया इन्हें अँग्रेजी में सी-गल और हिंदी में गंगा-चिल्ली कहते हैं।
11 टिप्पणियां:
poornimaji bahut sunder tasveer aur bhavabhivyakti ke liye bdhai
बहुत ख़ूब लिखा आपने पूर्णिमा जी। सच में कहीं ये सब कुछ हममें आ जाए, तो क्या बात है।
वैसे मैं तो एक चीज़ जानता हूं जो प्रकृति से प्यार नहीं करता वो ख़ुद से भी प्यार नहीं कर सकता।
सत्य कहा आपने.
वर्णन बहुत ही सुंदर बन पड़ा है।
बहुत ही बढिया...पारखी नज़र को सलाम
पढ़ते समय ऐसा लगा जैसे हर शब्द चित्र बन गया हो!
क्या बात है, बहुत सुन्दर!!
bahut hi acha varnan hai. acha laga padh kar
bahut hi uttam chitran hai. adbhut.
पूर्णिमा जी ,
बहुत अच्छा शब्द चित्र (मैं इसे शब्द चित्र ही कह रहा हूँ )सुंदर फोटो के साथ .बहुत पहले लखनऊ चिडिया घर में मैंने एक फोटो हवासील पक्षियों की खींची थी .वो फोटो यद् आ गयी .
हेमंत कुमार
पूर्णिमा जी ,
बहुत खुब!! सच कहूँ तो आपकी इस कहानी में हम मनुष्यों के लिए एक कीमती संदेश है।
आज हम सभी शान्ति से कोसो दूर होते जा रहे हैं, और शान्तिपूर्ण माहोल सभी के जीवन को खुशनुमा बनाता है।
उम्मीद है, हम सभी मनुष्य इससे कुछ सीखेगें।
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विनीत कुमार गुप्ता
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