मंगलवार, 15 जनवरी 2008

बूँदों में बसता है कोई

पिछले तीन-चार दिनों से रिमझिम जारी है। धूप का एकाध छींटा ही दिखाई दिया है बीच में, शारजाह में बारिश के नाम पर साल का यही एक हफ़्ता होता है। बस इसी हफ़्ते में साल भर का सावन जीना हो तो कैसे जिएँगे? एक पुराना गीत हाज़िर है, दुनिया भर में छाई सर्दी के मौसम में बारिश के छींटे का यह तड़का, आशा है मज़ा देगा। जावा एपलेट से परहेज़ ना हो तो यहाँ देखें अभिव्यक्ति के शुरू के दिनों में उपहार स्तंभ के लिए बनाया था।

झलमिल झिलमिल
रिमझिम रिमझिम
सपनों के संग
हिलमिल हिलमिल
बूँदों में बसता है कोई
आहट में सजता है कोई
धीरे धीरे इस खिड़की से
मेरी सांसों के बिस्तर पर
खुशबू सा कसता है कोई

हौले हौले
डगमग डोले
मन संयम के
कंगन खोले
कलियों सा हँसता है कोई
मौसम सा रचता है कोई
रातों की कोरी चादर पर
फिर सरोद के तन्मय तन्मय
तारों सा बजता है कोई

टपटिप टुप टुप
लुकछिप गुपचुप
मन मंदिर के
आंगन में रुक
कहने को छिपता है कोई
पर फिर भी दिखता है कोई
वाष्प बुझे धुंधले कांचों पर
साम ऋचा सा मद्धम मद्धम
यादों को लिखता है कोई

वही कहानी
दोहराता है
बार बार
आता जाता है
मस्ताना मादल है कोई
आँखों का काजल है कोई
बारिश को अंजुरी में भर कर
ढूँढ रहा वन उपवन में घर
सावन का बादल है कोई

झलमिल झिलमिल
रिमझिम रिमझिम
सपनों के संग
हिलमिल हिलमिल
बूँदों में बसता है कोई

10 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bahut hi sundar geetatmak kavita hai . shabdoon ki punrukti ke kaaran sundar lay utpann hua hai

art ने कहा…

bahut hi sundar , lay se paripurna , geetatmak kavita hai

Unknown ने कहा…

this is veryvery manchala man machalta good song.dil mein hichkole,dhadkan dole.
http://mehhekk.wordpress.com/

रंजना ने कहा…

ati sundar.Aaap to sundar likhti hi hain.Aisi hi likhti rahen,shubhkaamna.

Tarun ने कहा…

bahut sundar, ise parkar baarish ki pehli bund ki sugandh jaise anubhuti hui.

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

वाष्प बुझे धुंधले कांचों पर
साम ऋचा सा मद्धम मद्धम
यादों को लिखता है कोई

पूर्णिमाजी,

बहुत सुन्दर लगीं ये पंक्तियां

Unknown ने कहा…

बहुत बहुत लय भरी बहुत बहुत रिमझिम - बिल्कुल आज-कल की बारिश सी (हफ्ते से रस अल खेमा में बदली है - आज कल में वादियों में भी पानी आ गया होगा - जुमे के दिन शायद दिखे). अभी देखी और साथ बैठ बांची - सादर मनीष

ghughutibasuti ने कहा…

सुन्दर कविता है ।
घुघूती बासूती

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बरखा की नन्ही बूंदों सी , विकल मचल बेताब

झीरे अंगना मोरे, सपनों सी मचले, रे चुपचाप !
बहुत सुन्दर कविता ..Pearl ! :)

Asha Joglekar ने कहा…

पूर्णिमा जी क्या कहूँ शब्द नही मिल रहे कविता की तारीफ के लिये । लगा जैसे आप के साथ मै भई इस बारिश को देख रही थी और किसी को काँच पर साम वेद की ऋचाएँ लिखता देख रही थी ।