वाह ! हिंदी में ? मेरी पहली प्रतिक्रिया यही हुई थी इन नए डिब्बों को देखकर कर। कहना न होगा कि भाषा की लोकप्रियता और आवश्यकता बोलने और प्रयोग करने वालों की संख्या पर निर्भर होती है न कि सरकारी नियमों, देश या स्थान पर। यदि सरकार को पता चले कि जनता की भाषा बोले बिना काम नहीं चलेगा तो वे जनता की भाषा बोलने से परहेज नहीं करेंगे। इमारात में लगे नए कूड़ेदान भी इसे सिद्ध करते हैं।
ऐसे कूड़ेदान मैंने हवाईअड्डों पर विदेशों में काफी देखे हैं पर कभी ध्यान नहीं गया कि उन पर हिंदी में लिखा गया है या नहीं। मुझे लगता है कि उन पर हिंदी नहीं थी वर्ना ध्यान आकर्षित जरूर होता। इमारात की सरकार जानती है कि हिंदी लिखकर वे शहर को स्वच्छ बनाने में अधिक सफलता से काम कर सकते हैं। इसलिये इन कूड़ेदानों पर अरबी और अँगरेजी के साथ हिंदी में भी लिखवाया गया है। आप भी देखें... धूप बहुत तेज थी सो फोटो दूर से साये में खड़े होकर ली थी। इतनी साफ़ नहीं दिखती पर इसमें तीनों ख़ानों पर इस प्रकार लिखा है-
बाएँ से- हरे रंग में कागज, अखबार और कार्डबोर्ड, नीले में- बोतल डिब्बे और प्लास्टिक तथा लाल रंग में- अन्य सभी कूड़े। आप भी फोटो क्लिक कर के देखें। यहाँ लिखा हुआ देखकर समझना आसान हो जाएगा। दुबार फिर उधर गई तो एक साफ़ फोटो लेकर इसे बदल दूँगी।
यहाँ यह भी याद रखना आवश्यक कि भाषाई साम्राज्यवाद के चलते रईस देश गरीब देशों की जनता की भाषा को ही बदल देने पर जी जान से जुटे पड़े हैं। पर सोचना हमें है कि हम अपनी अस्मिता को मरने देते हैं या उसके लिये जी जान से जुटकर उसे ताकतवर बनाते हैं ताकि वह स्वस्थ होकर दुनिया से मुकाबला कर सके।
आप भी कहेंगे कूड़ेदान पर हिंदी देखकर इतना खुश हो जाने की भला क्या बात... हा हा सही हैं लेकिन जब हिंदुस्तान से हिंदी लुप्त हो रही है, जब हमें दिल्ली हवाई अड्डे पर एक भी किताब या पत्रिका हिंदी में दिखाई नहीं देती, जब क्नाटप्लेस पर खड़े होकर एक भी दूकान का नाम हिंदी में लिखा नजर नहीं आता और हमें भारत पहुँचकर ऐसा महसूस होता है कि हम इंगलैंड में खड़े हैं ऐसे वातावरण में विदेशों में हिंदी देखना, निश्चय ही, कुछ विशेष तो है।
7 टिप्पणियां:
हम तो सोच रहे थे कि हिन्दी खो गयी।
आपकी ए पोस्ट आपके हिंदी के प्रति लगाव और सम्मान को दर्शाता है. विदेशों में कूड़ेदान पर लिखी हिंदी तो और भी न जाने कितने जन पढ़ते होंगे पर आपकी पारखी नज़र जब इस पर पडी और साथ में अपनी राष्ट्र भाषा के प्रति लगाव के साथ जब अभिव्यक्त हुई तो काबिले गौर बन गई. हमारे देश की ये शुरू से ही विडम्बना रही है कि हम हमारे संस्कृति, भाषा, संस्कारों के नैतिक मूल्य कभी पहचान ही नहीं पाए. और जब वही सब चीज़ें विदेशी एन्वेलोप में हमारे सामने पेश हुईं तो हमने बड़े ही चाव से उसे अपनाया.. बहरहाल आपकी पोस्ट ने बेहद प्रभावित किया सम्मानिया पूर्णिमा जी ! आप तक मेरा नमन पहुंचे, यही ईश्वर से प्रार्थना है..प्रणाम !
बात तो सही कही है, आपने।
hamen bhi bahut khushi hui.
हिन्दी के प्रति आपके लगाव और निष्ठां को मैं नमन करता हूँ. आपका यह आलेख हर हिन्दुस्तानी को पढ़ना चाहिए.
Poornima ji
Yakeenan Hindi ko yahin sahi, dekhna mumkin hua jata hai yahi ek visfot hai visfoton ke khilaaf.
Jahan halchal hai vahan kuch kaise mar sakta hai. Halchal zindagi ki nishani hai
hindi kai liye aapke kary avismarniy honge dhanyabad
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