सोमवार, 18 अप्रैल 2011

बदरिया सावन की

बचपन की जो चीज़ें अभी तक मुझे याद हैं उसमें से एक है जूथिका राय की आवाज जो अक्सर छुट्टी के दिनों पिताजी के रेकार्ड चेंजर पर सुनाई देती थी। आज के डिजिटल युग के बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि रिकार्ड चेंजर क्या चीज़ होती है। ग्रामोफोन और टेपरेकार्डर के बीच की कड़ी, यह एक ऐसी मशीन थी, जिसमें कई रेकार्ड अपने आप एक के बाद एक बजते थे। रेकार्ड चेंजर का चलना हमारे लिए उत्सव समय होता था। परिवार के सभी लोग साथ बैठते, माँ कुछ पकौड़े या मठरी जैसी चीजें तश्तरियों में ले आतीं। हम पारिवारिक बातें करते पिताजी अच्छे मूड में होते, सोफ़े पर लेटने और कूदने की आज़ादी होती और जूथिका राय का गीत पृष्ठभूमि में- रिमझिम बदरिया बरसे बरसे... लगता था जैसे खुशियों के बादल बरस रहे हों।

जूथिका राय ने पिछले वर्ष अपने जीवन के ९० वर्ष पूरे किये। इस अवसर पर जयपुर में पिछले साल १८ अप्रैल को एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर उन्हें सम्मानित किया गया। प्रसन्नता की बात है कि हमारे विद्वान लेखक यूनुस खान भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बने। ( इसके कुछ अंश यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं।) आवाज की वह खनक, वह शैली और वह तरलता समय के साथ आज ऐतिहासिक भले ही मानी जाने लगी हो लेकिन लालित्य और माधुर्य में आज भी यह लोगों को लुभाती है। ठीक जूथिका राय की तरह जो आज भी उत्साह की प्रतिमूर्ति दिखाई देती हैं। बताने के लिए उनके पास हज़ारों किस्से हैं और सुनाने के लिए अनुभवों का असीम कोष। वे भारत के उन गिने चुने लोगों में से हैं जिनसे हर व्यक्ति प्रेरणा ले सकता है।

सात वर्ष की आयु से संगीत कार्यक्रम देने वाली जूथिका राय चालीस और पचास के दशक में अपनी लोकप्रियता की चोटी पर थीं। उन्होंने माला सिन्हा और सुचित्रा सेन जैसी अभिनेत्रियों के लिए हिंदी और बंगाली फ़िल्मों के गीत गाए, मीरा के भजनों के लोकप्रिय एलबम निकाले और देश विदेश में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किए। आज भी सबसे अधिक बिकनेवाले गैर फिल्मी गीतों के ग्रामाफोन रेकार्डों का कीर्तिमान उनके नाम पर है। उनके भजनों की मधुरता के लिए उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा गया। १९७२ में इंदिरा गाँधी ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। बांग्ला में उनकी आत्मकथा "आजोऊ मोने पोड़े" नाम से प्रकाशित हुई है। गुजरात में उनकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके हिंदी भजनों को गुजराती में लिपिपद्ध किया गया, उनके प्रशंसकों ने स्वतंत्र रूप से धन एकत्रित कर उनकी आत्मकथा का गुजराती अनुवाद प्रकाशित किया, उनके जीवन पर एक फीचर फिल्म का निर्माण किया और उनके सम्मान में २००८ तथा २००९ में भव्य कार्यक्रम आयोजित किए।

अंत में उनका वही रिमझिम बदरिया गीत जिससे आज की बात प्रारंभ हुई थी। सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की रिमझिम बदरिया उनके जीवन में एक सौ बीस साल तक बरसती ही रहे इसी मंगल कामना के साथ,

8 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

haan aisa hota tha apna bachpan , bajta tha record ' geet kitne gaa chuki hun is sukhi jag ke liye' ... bahut sukhad the we din

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हार्दिक शुभकामनायें।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

जुतिका राय जी की आवाज़ सुने बहुत दिन हो गए... रेडियो सिलोन गया यह आवाज़ मनमोहन कृष्ण, जगमोहन की आवाज़ की तरह आकाश में लुप्त हो गई। आपने याद दिलाया तो याद आया... :)

सागर नाहर ने कहा…

मैं इतना भाग्यशाली हूँ कि आदरणीय ज्यूथिकाजी से फोन पर (यूनुस भाई के सौजन्य से) कई मिनिटों तक बात की है।
ज्यूथिका जी का गाना "बादल देख डरी हो स्याम..." मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में से एक है। आपके गाए हुए "मैं बिरहिन बैठी जागूं; जगत सब सोवे री आली " मेरी बीना तुम बिन रोए.. जैसे कई गीत बहुत ही कर्णप्रिय है और लगभग 60-70 गीत मेरे संग्रह में है।
ज्यूथिकाजी के बारे जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

Patali-The-Village ने कहा…

हार्दिक शुभकामनायें।

Bharat Bhushan ने कहा…

यह आवाज़ बचपन से ही मन में बैठी है. "नैनन मेरे तुमरी ओर क्यों मिलो मुख मोर सजनवा..".

पूर्णिमा जी आपको बहुत धन्यवाद.

हिंदी विकिपीडिया पर आपका कार्य बहुत देखा है. आपके लिए शुभकामनाएँ.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ज्यूथिका राय जी के बारे में जानकर अच्छा लगा!

मथुरा कलौनी ने कहा…

पूर्णिमा जी

प्रस्‍तुति के लिये बहुत बहुत धन्‍यवाद। उस जमाने में हमलोग भी जूथिका राय के मीरा भजन साथ सुबह उठा करते थे।