![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhiThbCVQYvvyoK_hJ6u0mgKIAjDiubOdDpQ5kUlS7eIH_gXHazVtkcPGWoxNQKU8pX6C9Xt2stHsseBxbKkjs_aEQA9PI-0kKDnQbCqbWhi9ZA20wHyFlr7C9se_vDMemNQ0N9PEZRV9o/s320/kg11_23_09.jpg)
मरुस्थल को इमारात में सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है इसलिए इसके रखरखाव और संरक्षण पर सरकार विशेष ध्यान देती है। दुबई-अलेन हाईवे पर दुबई से ४५ मिनट आगे मरगम का संरक्षित मरुस्थल इसका जीता-जागता प्रमाण है। २२५ वर्ग किलोमीटर में फैले इस मरुस्थल का ९० किलोमीटर लंबा छोर हाईवे के साथ साथ चलता है। पर्यटकों के लिए इसमें विहार के सख्त नियम बनाए गए हैं। फ़ोर व्हील ड्राइव की गति सीमा ४० किमी प्रतिघंटा निर्धारित की गई है और हर गाड़ी में बैक ट्रैक प्रणाली का होना आवश्यक है ताकि निगरानी दस्ता हर गाड़ी की खबर रख सके। मरुस्थल में रास्ते भी निश्चित कर दिये गए हैं। इसके दो लाभ होते हैं एक तो पर्यटकों के भटकने का डर नहीं रहता दूसरे यहाँ उगने वाली वनस्पतियों और निवास करने वाले जीवों की भी सुरक्षा होती है। मरगम में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती अनेक वनस्पतियों और जीवों का संरक्षण किया गया हैं, जिनमें अरबी हिरनों की दो प्रजातियाँ- पीले रंग के गज़ेले और काले धूसर ओरिक्स प्रमुख हैं। यहाँ फैला रेत का सागर लाल रंग का है, यह लाल रंग आयरन ऑक्साइड के कारण आता है।
मरुस्थल में गाड़ी चलाना, कभी दूर से किसी हिरन के दिख जाने पर कैमरे को दूरबीन की तरह इस्तेमाल करना और देर तक रेत में समाते हुए सूरज को देखना यहाँ के विशेष आकर्षण हैं। सैंड बैशिंग और सैंड स्की साहसिक खेलों के शौकीनों के लिए काफ़ी रोचक सिद्ध होते हैं। जो कुछ भी न करना चाहे वह भी ऊँट की सवारी, अरबी मेंहदी, अरबी तंबू में जीवंत प्राचीन संस्कृति के दृश्यों, नृत्य-संगीत और खाने पीने का आनंद उठा सकता है। मरगम के भीतर एक बड़े रेत के टीले की तलहटी में बसा 'अल सहरा' सुस्ताने की बढ़िया जगह है। जगमगाती लालटेनों से घिरे इस टुकड़े पर चाय-कॉफी, अरबी रात्रिभोज, बिदोइन तंबू, बार और शीशे (एक तरह का हुक्का) की व्यवस्था सैर की थकान के बाद अच्छी लगती है। अरबी खाने का आरंभ फ़िलाफ़िल और शावरमा से होता है। इसके बाद शाकाहारी व मांसाहारी दोनो ही प्रकार के तले, भुने और शोरबेदार व्यंजनों के साथ अरबी रोटियाँ, सलाद, हमूस और पुलाव परोसे जाते हैं। भोजन का अंत फल, मिठाई और बकलावे (एक प्रकार की मिठाई) से होता है। रेगिस्तान की रात सितारों से जगमग होती है। इन्हें ठीक से देखने के लिए अधिकतर लालटेनें बुझा दी जाती हैं। तभी बेली नर्तकी का आगमन होता है जो अरबी संगीत, नृत्य और संस्कृति का विशेष अंग है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidnKqcdxEOm1UNvyyIpi1BIcQ0r8XyL_7f8w9h0X_e_46Xtj1SryRD469S0-lnyHaHgEh_56wZXNRQvku68uunbUr4q7s3cexsPyU6xYD6aXi6Crv0GqkpFHkKgjZUvwfVaKMOMijnIhc/s320/kg11_23_09a.jpg)
इस देश में मरुस्थल से जुड़ी एक कहावत और भी है- अगर आप मरुस्थल से घर जा रहे हैं तो घर में उसकी अगवानी के लिए पहले से तैयार रहें क्यों कि आपके जूतों और जेबों में वह आपके साथ घर पहुँचता है। कुछ लोगों को इस प्रकार मरुस्थल का घर तक पीछा करना अच्छा नहीं लगता, जबकि कुछ लोग घर आई रेत को एक प्याले में इकट्ठा कर के यात्रा के स्मृतिचिह्न की तरह सहेजते हैं।
8 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण .....बढ़िया प्रस्तुति. आपकी पोस्ट के माध्यम से बहुत कुछ जानने का मौका मिला आभार .
मरुस्थल में राह दिखाने वाले ऊँट ही होते है ज़्यादातर..वैसे यात्रा आसान नही होता बिना किसी पथ प्रदर्शक के....बढ़िया विवरण..धन्यवाद
shandaar prastuti
अच्छी जानकारी देता रेगिस्तानी यात्रा का संस्मरण॥
नीले समुन्दर के साथ पीले समुन्दर की तरह फैली रेत दुबई की खासियत है ........ अपने बहुत ही लाजवाब संस्मरण की तरह इस द्रश्य को खींचा है .........
कुछ लोग घर आई रेत को एक प्याले में इकट्ठा कर के यात्रा के स्मृतिचिह्न की तरह सहेजते हैं।-हम भी ब्लॉग पर उस रेत को सहेजते हैं...प्याले में इकट्ठा करने पर बीबी नाराज होती है. :)
पूर्बणिमा जी,
बहुत अच्छी जानकारी को आपने सुन्दर और रोचक ढग से कलमबद्ध किया है।
शुभकामनायें।
पूनम
साफ़ शब्दों में बढ़िया संस्मरण. मरुस्थल तो मैं भी घूम चूका हूँ पर इतनी बारीकी से अध्यन नहीं किया. समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आकर मेरा मार्गदर्शन करें.
एक टिप्पणी भेजें