
फुटबॉल इमारात का राष्ट्रीय खेल है। यहाँ के गर्म मौसम के कारण खेल का समय साल में कुछ दिन ही रहता है- सर्दियों के महीनों में। सर्दियाँ भी बिलकुल हल्की गुलाबी रौनक भरी दुपहरी वाली। इन दिनों आवासीय कॉलोनियों की हर सड़क पर फुटबॉल की ऐसी धूम रहती है जैसी भारत में क्रिकेट की। खेल की भी एक आवाज़ होती है.... विजय में डूबी उमंग की, जोश से भरे उत्साह की, कारों के भयभीत हॉर्न की, खिड़की के बिखरते काँच की, बच्चों पर बरसती फटकार की। ये आवाज़ें बड़ी लुभावनी होती हैं और पूरे मुहल्ले को अपने रंग से भर देती हैं।
मई के आरंभ तक यहाँ सर्दियों का अंत हो जाता है। यानी दिन सुनसान होने लगते है। पिछले दस सालों में इमारात की संस्कृति में तेज़ी से बदलाव आया है। लगभग पूरा दुबई काँच की गगनचुंबी इमारतों में परिवर्तित हो गया है। पुराने मुहल्ले या तो ख़त्म हो गए हैं या ख़त्म होने की कगार पर हैं। इनके स्थान पर काँच की दीवारों वाली बहुमंज़िली इमारतें आ गई हैं। जो मुहल्ले बच गए हैं, उनमें रहने की अलग शैली है। इनके आलीशान घरों में रहने वाले आभिजात्य बच्चे सड़कों पर नहीं खेलते। वे फुटबॉल के लिए बनाए गए विशेष मैदानों पर खेलते हैं। विशेष मैदान होना अच्छी बात है, पर विकास के साथ हम बहुत सी दिलकश आवाज़ों को भी खो रहे हैं जो भविष्य में कभी कहीं सुनाई नहीं देंगी। सड़कों पर खेलते हुए बच्चों की आवाज़ें भी उनमें से एक हैं।