सोमवार, 17 दिसंबर 2007

एक और साल

गुज़रते हुए 2007 के अब कुछ ही दिन शेष हैं, तो आज का यह गीत बीतते हुए साल के नाम

लो बीत चला एक और साल

अपनों की प्रीत निभाता-सा
कुछ चमक–दमक बिखराता-सा
कुछ बारूदों में उड़ता-सा
कुछ गलियारों में कुढ़ता-सा
हम पात-पात वह डाल-डाल
लो बीत चला एक और साल

कुछ नारों में खोया-खोया
कुछ दुर्घटनाओं में रोया
कुछ गुमसुम और उदास-सा
दो पल हँसने को प्यासा-सा
थोड़ी खुशियाँ ज़्यादा मलाल
लो बीत चला एक और साल

भूकंपों में घबराया-सा
कुछ बेसुध लुटा लुटाया-सा
घटता ग़रीब के दामन-सा
फटता आकाश दावानल-सा
कुछ फूल बिछा कुछ दीप बाल
लो बीत चला एक और साल

कुछ शहर-शहर चिल्लाता-सा
कुछ गाँव-गाँव में गाता-सा
कुछ कहता कुछ समझाता-सा
अपनी बेबसी बताता-सा
भीगी आँखें हिलता रूमाल
लो बीत चला एक और साल

7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर

36solutions ने कहा…

बढिया भावाभिव्‍यक्ति । धन्‍यवाद ।

आरंभ

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

साल का सा
सालसा
गीत है आपका
छोटी छोटी
मनबेरियों
का फाल सा
ठंडक देगा
सिर्फ, नहीं
करेगा कोई
उफ !

मीठा है
साल सा
फाल सा
प्रपात सा

नहीं है
झंझावात सा

गीत है
आपका
हमारा
मन
मीत सा
साल सा.

पारुल "पुखराज" ने कहा…

bahut khuub....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

एक एक शब्द अपने आप में पूर्ण है ,ऐसी अद्भुत रचना के लिए आप को ढेरों बधाईयाँ. कहाँ से लाती है ऐसे शब्द और भाव आप ? में तो अभिभूत हूँ आप की रचनात्मक प्रतिभा से. वाह वाह वाह......
नीरज

बालकिशन ने कहा…

बहुत सुंदर!
एक अच्छी और भावपूर्ण कविता के माध्यम से पूरे साल का लेखा-जोखा कर दिया.

पी के शर्मा ने कहा…

pahli january 2008 ki subhah-savere aik sunder sa geet padhne ko mila. purnimaji aapko badhai.