
समय और स्थान बदलने से बहुत सी धारणाएँ किस तरह बदल जाती हैं इसका आभास पिछले कुछ सालों में गहराई से हुआ है। पृथ्वी जैसी ज़मीन से दिखती है वैसी ही तीसवीं मंज़िल से नहीं दिखती इसका आभास भी बहुत से लोगों को होगा। हम सब यह भी जानते हैं कि पहाड़ी शहरों में बादल खुली खिड़कियों से कमरे में आ जाते हैं और अक्सर नीचे घाटियों में तैरते दिखाई देते हैं या कोहरा घाटी से उठता है और आकाश में जम जाता है। मैदानी शहरों में रहने वाले यह भी जानते हैं कि सर्दी की ठंडी रातों में देर रात कोहरा फुहार की तरह बरसता है, लेकिन सुबह का कोहरा आसमान में नहीं ज़मीन में नदी की तरह बहता है उसका आभास पिछले दिनों दुबई के निवासियों को शायद पहली बार हुआ।
यह तो मैंने पिछले एक लेख में लिखा ही था कि इमारात में गर्मियों की कई सुबहें कोहरे से भरी होती हैं। इस बार दस मार्च को एक ऐसी ही सुबह थी। दुबई की बहुमंज़िली इमारतों में रहने वाले लोगों ने सुबह उठकर खिड़की के बाहर गहरी सड़क की जगह ऊपर तक उफनती कोहरे की एक नदी देखी। यों तो समंदर में आसमान तक भरे कोहरे, या शहर की सड़कों पर यातायात अवरुद्ध करते हुए कोहरे को हम सबने देखा है लेकिन नीचे की ओर सड़क में भरे कोहरे को देखने का यह अनुभव अनोखा था। ऐसा लगा जैसे खुले हुए प्राकृतिक स्थलों से इसे जबरदस्ती मार भगाया गया है और वह शहर की सड़कों में अट्टालिकाओं के बीच आ छुपा है। दोपहर दस बजे के बाद यह नदी धीरे धीरे घुलकर गायब हो गई। कहना न होगा कि लोगों ने इस दृश्य का जी भर कर आनंद लिया, फोटो खींचे और देर तक इसके साथ लगे रहे। समाचार पत्रों में भी अगले दिन कोहरे की इस नदी के खूब चित्र छपे। इन्हीं में से लिया गया एक चित्र ऊपर प्रस्तुत है। बड़ा आकार देखने के लिए चित्र को क्लिक करना होगा। आशा है प्रकृति का यह अनोखा सौंदर्य उन सबको लुभाएगा जिन्होंने ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा है।
जंगलों की ओर बढ़ते शहरों ने जिस तरह पशुओं को बेघर कर के शहर में बेघर घमने पर मजबूर कर दिया है आशा है उस तरह का हाल प्रकृति का नहीं होगा। नदियाँ सदानीरा बनी रहेंगी, पर्वत हरियाली संभाले रहेंगे, समंदर शहरों पर कहर नहीं ढाएँगे और कोहरे की नदी खिड़की पर आएगी तो, पर कुछ भी बहा नहीं ले जाएगी।
7 टिप्पणियां:
नदियाँ सदानीरा बनी रहेंगी, पर्वत हरियाली संभाले रहेंगे, समंदर शहरों पर कहर नहीं ढाएँगे और कोहरे की नदी खिड़की पर आएगी तो, पर कुछ भी बहा नहीं ले जाएगी।
ummed acchi hai..but what will be the quality of that water ???
रोचक जानकारी!!
बहुत बढ़िया पोस्ट और चित्र भी उम्मीद है कि आपकी बात सच होगी कि नदियाँ सदनीरा रहेंगी ....."
गर्मियों की कई सुबहें कोहरे से भरी होती हैं।
सही बात। कई बार गर्मियों में सवेरे गंगा माई को धुन्ध से लिपटे पाया है मैने!
आपकी यह सकारात्मक सोच बड़ा बल दे गई.
kohre ki nadi ek sundar reporting hai.garmi ke dino me dhool bhari aandhiya chalne se bhi aasmaan me eisaa hota hai.
सुश्री पूर्णिमा वर्मन जी!
आपके आलेख को पढ़कर प्रकृति के अनोखे स्वरूप
की जानकारी मिली। यह बदलाव ख़तरे की घंटियाँ भी हो सकती हैं। प्रकृति हमारे लिए वरदायनी बनी रहे ऐसी हम कामना करते रहते हैं। यह तो उल्टी गंगा बहाने वाली बात हुई। वह हमारे लिए वर दायनी बनी रहे यह तभी संभव है जब हमसब उसके प्रति उदारमना हों।
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जल की कीमत समझ ले, जलका कर तू मान।
जल नैनों का अश्रु है, अधरों की मुसकान॥
केवल जलचर ही नहीं, भू-नभ चर जल-हाथ।
जलपर आश्रित हैं सभी, जल बिन विश्व अनाथ॥
जल ही जगका सार है, बिन जल जगत असार।
तड़पेगा जल हानिकर, भस्मासुर संसार॥
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