शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

सड़कों पर


सड़कों पर हो रही सभाएँ
राजा को-
धुन रही व्यथाएँ


प्रजा
कष्ट में चुप बैठी थी
शासक की किस्मत ऐंठी थी
पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
राजतंत्र की हुई ठिठोली
अखबारों-
में छपी कथाएँ


दुनिया भर
में आग लग गई
हर हिटलर की वाट लग गई
सहनशीलता थक कर टूटी
प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
दुनिया को-
मथ रही हवाएँ


जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की-
नौकर सेनाएँ

16 टिप्‍पणियां:

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

देश और दुनिया के बारे में संवेदनशील कथन!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आज के राजनीतिक परिवेश पर सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकारें पूर्णिमा जी :)

राजेश उत्‍साही ने कहा…

समकालीन परिदृश्‍य का चित्रण है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नहीं जानते
किसके आगे
बन्दूकों की नालें होगी,

Bharati Pandit -Glimpse of Life ने कहा…

good one.. ekdam satik aur chutili.

राजीव तनेजा ने कहा…

सहन शक्ति की भी एक सीमा होती है...
सामयिक रचना

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan ने कहा…

"जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की-
नौकर सेनाएँ "
रचनाकार न केवल वर्तमान का प्रहरी होता है, बल्कि भविष्य का वक्ता भी होता है. आपकी यह रचना वर्त्तमान और भविष्य की जिन चिंताओं को गीतायित कर रही है, वह श्लाघनीय है.

SomeOne ने कहा…

बहुत ही गहरी सोच का मुआयना करवाया है ,
Its fist time to me that I m your blog, its really nice.

Patali-The-Village ने कहा…

समकालीन परिदृश्‍य का चित्रण है। धन्यवाद|

मयंक ने कहा…

समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे
समतल पीटे बिना समर कि भूमि नहीं छोड़ेंगे

शानदार कविता के लिए बधाई....

पी के शर्मा ने कहा…

आप सच में एक शिल्‍पकारा हैं।
'सड़को पर बंदूक टहलती'नया प्रयोग लगा और बेहद पसंद आया। एक सादगी भरी व्‍यंग्‍य चुटकी है।

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

हर हिटलर की वाट लग गई...........बहुत ही सुंदर नवगीत पूर्णिमा जी| बधाई|

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत सुंदर नवगीत पूर्णिमा जी बधाई और शुभकामनाएं

Unknown ने कहा…

सुंदर भी सामयिक भी। बधाई।

sharda monga (aroma) ने कहा…

बहुत सुंदर पूर्णिमाजी.

sharda monga (aroma) ने कहा…

बहुत सुंदर पूर्णिमाजी.